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________________ २६८ महाबंधे ___२१३. सम्मादिट्टि ओधिभंगो। णवरि केवलिभंगो कादयो । खड्ग-सम्मादिट्टि० पंचणा० छदंस० बारसक० पुरिस० भयदु० पंचिंदि० तेजाक० वण्ण०४ अगु०४ पसत्थवि० तस०४ सुभग-सुस्सर-आदेज-णिमिण-उच्चागोद-पंचंतराइगाणं बंधगा अट्टचोद्दस० । अबंधगा केवलिभंगो। एवं सेसाणं पगदीणं सम्मादिठि-भंगो। णवरि मणुसगदिपंचगं अबंधगा, देवगदि०४ बंधगा खेत्तभंगो। २१३. सम्यक्त्वियोंमें' अवधिज्ञानके समान भंग है । विशेष, यहाँ केवलो-भंग करना चाहिए । विशेष-सम्यक्त्वमार्गणामें चतुर्थसे लेकर चौदहवें गुणस्थानका सद्भाव है। इस कारण यहाँ केवली-भंग भी कहा है। क्षायिक सम्यक्त्वीमें-५ ज्ञानावरण,६दर्शनावरण, १२ कषाय, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, पंचेन्द्रिय, तैजस-कार्मण, वर्ण ४, अगुरुलघु ४, प्रशस्त विहायोगति, त्रस ४, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, उच्चगोत्र, ५ अन्तरायके बन्धकोंका पाई है; अबन्धकोंका केवली-भंग है । विशेषार्थ-विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक तथा मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा अविरत गुणस्थानवर्ती क्षायिक सम्यक्त्वीने नई भाग स्पर्श किया है । (ध० टी०) फो० पृ० ३०२)। विशेषार्थ-क्षायिक सम्यक्त्वी जीवोंमें स्वस्थानपदोंसे लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्श किया है । अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम नई भाग स्पर्श किया है ( यह कथन विहारवत् स्वस्थानकी अपेक्षा है)। समुद्धात पदोंसे क्षायिक सम्यग्दृष्टियों द्वारा लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पृष्ट है। अतीतकालकी अपेक्षा कुछ कम ई भाग स्पृष्ट है। इनके द्वारा वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिक समुद्घात पदोंसे देशोन भाग स्पृष्ट है । प्रतर समुद्घातगत केवलीकी अपेक्षा वातवलयको छोड़कर शेष समस्त लोकमें व्याप्त जीव प्रदेश पाये जाते हैं। दण्डसमु. द्घातगत केवलियोंके द्वारा चार लोकोंका असंख्यातवाँ भाग, और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है। कपाट समुद्घातगत केवलियोंके द्वारा तीन लोकोंका असंख्यातवाँ भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवाँ भाग और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यात गुणा क्षेत्र स्पृष्ट है। लोकपूरण समुद्घातकी अपेक्षा सवलोक स्पर्शन है। उपपादकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पृष्ट है (खु० बं० टीका पृ० ४४६-४५१)। ___ इस प्रकार शेष प्रकृतियोंका सम्यग्दृष्टिके समान भंग है। मनुष्यगति ५ के अबन्धकोंमें तथा देवगति ४ के बन्धकोंमें क्षेत्रके समान भंग है। १. "सम्मत्ताणुवादेण सम्मादिट्ठीसु असंजदसम्मादिट्टिप्पहुडि जाव सजोगिकेवलित्ति ।" -सू० १६७ । २. ख इयसम्मादिट्ठी सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो अट्टचोद्द सभागा वा देसूणा । समग्घादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं? लोगस्स असंखेज्जदिभागो। अट्रचोदृसभागा वा देसूणा। असंखेज्जा वा भागा । सव्वलोगो वा । उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो। -खु० ब०, सू० २३०-२३९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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