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________________ २६९ www पयडिबंधाहियारो २१४. वेदगे ओधिभंगो पत्तेगेण साधारणेण । अबंधगा पत्थि । उवसमस० खड्गसम्मादिद्विभंगो । णवरि केवलिभंगो णस्थि । तित्थयरं बंधगा खेत्तभंगो। सासणे धुविगाणं बंधगा अट्ठबारह । अबंधगा पत्थि । सादासादबंधगा.अबंधगा अहवारह. दोण्णं बंधगा अहवारह० । अबंधगा णस्थि । एवं चदुणोक० । थिरादि-तिण्णि-युगलं । इत्थि. पुरिस० बंधगा अबंधगा अट्ठएकारसभागो० । दोणं बंधगा अट्ठएकारस० ) अबंधगा णस्थि । एवं पंचसंठा० पंचसंघ० (१) दो विहाय दोसर० । दो आयु २१४. वेदकसम्यक्त्वमें-अवधिज्ञानके समान प्रत्येक तथा सामान्यसे भंग है। यहाँ अबन्धक नहीं हैं। _ विशेषार्थ-वेदक सम्यक्त्वियोंने स्वस्थान तथा समुद्घात पदोंसे लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्श किया है । अतीतकालकी अपेक्षा देशोन र भाग स्पर्श किया है। विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिक पदोंसे देशोन भाग स्पृष्ट है। - उपपादकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवाँ भाग अथवा देशोन भाग स्पृष्ट है । तियच और मनुष्योंमेंसे देवोंमें उत्पन्न होनेवाले वेदक सम्यग्दृष्टियों-द्वारा स्पृष्ट है'। उपशमसम्यक्त्वमें-क्षायिकसम्यक्त्वीके समान भंग है। विशेष, यहाँ केवली-भंग नहीं है । तीर्थकरके बन्धकोंका क्षेत्रके समान भंग है। विशेषार्थ-उपशम सम्यक्त्वियों-द्वारा स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पृष्ट है। अतीतकालकी अपेक्षा देशोन : भाग स्पृष्ट है। उपपाद तथा समुद्घात पदोंसे लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्शन है। मारणान्तिक समुद्घात व उपपाद पदोंसे परिणत उपशम सम्यक्त्वियों द्वारा चार लोकोंका असंख्यातवाँ भाग और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है, क्योंकि मानुष क्षेत्र में ही मरणको प्राप्त होनेवाले उपशम सम्यग्दृष्टि पाये जाते हैं (माणुसखेतम्मि चेव मरंताणं उवसमसम्माहट्ठीणमुवलंभादो)। शंका-वेदना, कषाय और वैक्रियिक समुद्घातकी अपेक्षा उपशम सम्यग्दृष्टि देवोंमें ६ भाग यहाँ क्यों नहीं कहा? __ समाधान-ऐसा निरूपण करनेपर सासादन सम्यग्दृष्टिके मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा भी भाग होते हैं, ऐसा सन्देह न हो अतः उसके निराकरणके लिए यह निरूपण नहीं किया गया है । (पृ० ४५४,खु० बं०) सासादनमें-ध्रुव प्रकृतियोंके बन्धकोंका १, ३३ है अबन्धक नहीं है। साता, असाताके बन्धकों,अबन्धकोंका पंह, १३ है। दोनोंके बन्धकोंका है। अबन्धक नहीं है । इस प्रकार हास्यादि चार नोकषाय तथा स्थिरादि तीन युगलमें जानना चाहिए । स्त्रीवेद, पुरुषवेदके बन्धकों,अबन्धकोंके ट है। दोनोंके बन्धकोंकेत है; अबन्धक नहीं है। ५ संस्थान (हुण्डक बिना), ५ संहनन (असम्प्राप्तामृपाटिका बिना), दो विहायोगति तथा दो १. वेदगसम्मादिट्ठी सत्थाणसमुग्धादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो । अटुचोद्दसभागा वा देसूणा । उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो। छच्चोहसभागा वा देसूणा -खु० बं०,सू० २४०-२४५ । २. उवसमसम्माइट्ठी सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो । अट्ठचोद्दसभागा वा देसूणा । समुग्घादेहि उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदि. भागो । -खु० बं०,सू० २४६-२५० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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