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पयडिबंधाहियारो अबंधगा अट्ठणवचो० । णस० बंधगा अट्ठणवचो० । अबंधगा अट्ठचोदस० । तिण्णि वेदाणं बंधगा अट्ठणवचो० । अबंधगा णस्थि । इस्थिभंगो दोआयु-मणुसगदिदुगं पंचिंदि० पंचसंठा० ओरालि. अंगो० छस्संघ आदा० दोविहा० तस-सुभग-आदे० तित्थयरं उच्चागोदं च । णqसगभंगो तिरिक्खगदिदुगं एइंदि० हुंडसंठा० थावर-दूभग-अणादे० णीचागोदं च । देवायु-आहारदुगं बंधगा खेत्तभंगो । अबंधगा अट्ठणवचोद्दस० । देवगदि०४ बंधगा दिवड्ढ-चोद्दसभागो। अबंधगा अट्ठणवचो० । ओरालियसरीरं बंधगा अट्ठणवचो० । अबंधगा दिवड्ढचोदसभागो। एवं पत्ते. साधारणेण वि । सन्चपगदीणं बंधगा अढणवचोदसभागो। अबंधगा णत्थि । आयु० अंगोवंग-संघडणविहाय [ एवं ] । पम्माए-पंचणा० छदसणा० चदुसंजल० भयदु० पंचिंदि० तेजाक० वण्ण०४ अगु०४ तस०४ णिमिण-पंचंतराइयाणं बंधगा अट्ठ० । अबंधगा णत्थि । असंख्यातवाँ भाग है । स्त्रीवेद, पुरुषवेदके बन्धकोंका छ, अबन्धकोंके ६४, ६ है । नपुंसकवेदके बन्धकोंके ६४, ६४ है; अबन्धकोंके ६४ है। तीनों वेदोंके बन्धकोंके ६४, ३४ है। अबन्धक नहीं हैं। मनुष्य-तिथंचायु, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, पंचेन्द्रिय, पंच संस्थान, औदारिक अंगोपांग, ६ संहनन, आसप, दो विहायोगति, त्रस, सुभग, आदेय, तीर्थकर तथा उच्चगोत्रका स्त्रीवेदके समान जागना चाहिए। तियचगति. तियचगत्यानुपूर्वी, एकेन्द्रिय, हुण्डकसंस्थान, स्थावर, दुभंग, अनादेय तथा नीचगोत्रका नपुंसकवेद के समान भंग है। देवायु, आहारकद्विकके बन्धकोंके क्षेत्रके समान लोकका असंख्यातवाँ भाग है । अबन्धकोंका ६४, ६४ है । देवगति, देवगत्यापूर्वी, वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक अंगोपांगके बन्धकोंके १३, अबन्धकोंके ६४, ६४ है । औदारिक शरीरके बन्धकोंके पंड, पंड है, अबन्धकोंके १३ है। प्रत्येक तथा सामान्यसे भी इसी प्रकार है। शेष सर्व प्रकृतियों के बन्धकोंके ६४, ६४ है; अबन्धक नहीं हैं । आयु, अंगोपांग, संहनन तथा विहायोगतिमें ( इसी प्रकार जानना चाहिए)। . पनलेश्यामें - ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, भय-जुगुप्सा, पंचेन्द्रिय जाति, तैजस, कार्मण, वर्ण ४, अगुरुलघु ४, त्रस ४, निर्माण तथा ५ अन्तरायके बन्धकोंके ६४ है। अबन्धक नहीं हैं।
विशेष-पालेश्यावाले मिथ्यात्वसे अविरत सम्यक्त्वी पर्यन्त जीवोंने विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक तथा मारणान्तिककी अपेक्षा ६ राजू ऊपर तथा नीचे दो राजू, भाग स्पर्श किया है। उपपादं परिणत उक्त जीवोंने ५४ स्पर्श किया है। विशेष, मिश्र गणस्थानमें उपपाद मारणान्तिकपनेका अभाव है। (पृ० १९८)। ___ 'खुद्दाबन्ध टीकामें लिखा है, पद्मलेश्यावाले जीवोंने स्वस्थान और समुद्घात पदोंसे लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्श किया है। अतीत कालकी अपेक्षा कुछ कम ६ भाग स्पर्श किये हैं। स्वस्थान पदकी अपेक्षा तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भाग और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यात गुणे क्षेत्रका स्पर्श किया है। बिहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिक समुद्घात पदोंसे परिणत इन जीवों द्वारा कुछ कम छ
१. "पम्मलेस्सिएमु मिच्छादिटिप्पडि जाव असंजदसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असोजविभागो । अट्टयोद्दसभागो वा देसूणा।" -षट्खं०,फो० सू० १५४-१५५ ।
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