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पयडिबंधाहियारो सादासाद-बंधगा अबंधगा अट्ठचोदस० । दोण्णं बंधगा अट्ठचोद्दस० । अबं० णत्थि । अप्पचक्खाणा०४ बजरिसह० बंधगा अट्टचो० । अबं० छचोदस० । हस्सरदि-अरदिसोगाणं बंधगा अबंधगा अडचोद्दस० । दोणं युगलाणं बंधगा अट्टचो० । अबं० खेत्तभंगो । एवं थिराथिर-सुभासुभ-जसअजसगित्तीणं। मणुसायुतित्थयरं बंधा अबंधगा अट्ठचोद्दसभागो। देवायु. आहारदुग० बंधगा खेत्तभंगो। अबं० अढचो० । दोणं आयुगाणं बंधा अबंधगा अडचोदस० । मणुसगदि०४ बंधगा अट्ठचोदस० । अबं० छच्चोदस० । देवगदि०४ बंधगा छच्चोइस० । अबं० अट्टचोद्दस० । दोणं बं० अट्ठचोद्दसभागो। अबंधगा खेत्तभंगो। एवं दोसरी० दोअंगो० आणु० । एवं ओधिदं० ।
साता-असाताके बन्धकों, अबन्धकोंका है। दोनोंके बन्धकोंका है ; अबन्धक नहीं हैं । अप्रत्याख्यानावरण ४. वनवृषभसंहननके बन्धकोंका ; अबन्धकोंका पर है।'
विशेष-मारणान्तिकसमुद्धातगतसंयतासंयतोंने अच्युतकल्प पर्यन्त १४ भाग स्पर्श किया है। . हास्य-रति, अरति-शोकके बन्धकों,अबन्धकोंका है। दोनों युगलोंके बन्धकोंका यह है। अबन्धकोंका क्षेत्रके समान भंग है अर्थात् लोकका असंख्यातवाँ भाग है। इस प्रकार स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यशःकीर्ति-अयशकीर्तिमें भी जानना चाहिए। मनुष्यायु तथा तीर्थकरके बन्धकों, अबन्धकों के 5 है। देवायु तथा आहारकद्विकके बन्धकोंका क्षेत्रवत् भंग है अर्थात् लोकके असंख्यातवें भाग है। अबन्धकोंके ६४ है।
___ दो आयुके बन्धकों, अबन्धकोंका २४ है। मनुष्यगति ४ के बन्धकोंका है। अबन्धकोंका कर है । देवगति ४ के बन्धकोंका कर है ; अबन्धकोंका ६ है ।।
___ विशेष-मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी, औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांगके अबन्धक देशवतीकी अपेक्षा कहा है।
मनुष्यगति, देवगति के बन्धकोंका ६ है । अवन्धकोंका क्षेत्रके समान लोकका असंख्यातवाँ भाग है। दो शरीर, दो अंगोपांग तथा दो आनुपूर्वीमें इसी प्रकार जानना चाहिए।
अवधिदर्शनमें - ऐसा ही जानना चाहिए।
विशेषार्थ-आभिनिबोधिक ज्ञानी, श्रुतज्ञानी तथा अवधिज्ञानी जीवोंने स्वस्थान. और समुद्घात पदोंसे वर्तमान कालकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्श किया है । अतीत कालकी अपेक्षा देशोन ६ भाग स्पर्श किया है। उक्त तीन ज्ञानवाले जीवोंने स्वस्थान पदोंसे तीन लोकोंका असंख्यातवाँ भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवाँ भाग तथा अढ़ाई द्वीपसे असंख्यात गुणे क्षेत्रका स्पर्श किया है । तैजस और आहारक समुद्घात की अपेक्षा क्षेत्रके समान निरूपण है । विहार वत् स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिक समुद्घात पदांसे देशोन १४ भाग स्पर्श किया है ।
१. पमत्तसंजदप्पडि जाव अजोगिकेवलीहि केवडियं खेतं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो। -पटर्ख०,फो० सू०९। २. असंजदसम्माइट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो। अट्ठचोद्दसभागा वा देसूणा -सू०५-६।
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