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पयडिबंधाहियारो
२५५ २०८. मदि० सुद०-धुविगाणं बंधगा सबलोगो। अबंधगा णथि । सादासाद-बंधगा अबंधगा सव्वलोगो। दोण्णं बंधगा सव्वलोगो। अबंधगा णत्थि । एवं तिण्णिवे. हस्सादि-दोयुगलं पंचजादि-छस्संठा तसथावरादिणवयुगलं दोगोदाणं च । मिच्छत्तं बंधगा सव्वलोगो। अबं० अट्ठबारह० । दो-आयुबंधगा खेत्तभंगो । अबंधगा सव्वलोगो तिरिक्खायुबंधगा अबं० सव्वलोगो । मणुसायु-बंधगा अदुबारह सव्वलोगो। अबंधगा सव्वलोगो । चदुआयुबंध० अबं० सव्वलोगो । एवं छस्संघ दोविहा० दोसर० । णिरयगदि-णिरयाणु० बंधगा छच्चोदस० । अबं० सबलोगो। दोगदि० दोआणु ० बंध० अबं० सबलोगो। देवगदि-देवगदिपाओ० बंधगा पंच-चोद्दस० । अबं० सव्वलोगो । चदुगदि-चदुआणु० बंधगा सबलोगो। अबंधगा णस्थि । ओरालि० बंधगा सव्वलोगो । अबंधगा एक्कारहभागो । वेउब्धियाणु ० (१) ( वेउब्धिय ) बंधगा एक्कारहभागो । अबंधगा सबलोगो। दोणं बंधगा सबलोगो। अबंधगाणत्थि । ओरालिय०
२०८. मत्यज्ञानी श्रुताज्ञानीमें-ध्रुव प्रकृति योंके बन्धकोंका सर्वलोक है : अबन्धक नहीं हैं । साता, असाताके' बन्धकों, अबन्धकोंका सर्वलोक है। दोनोंके बन्धकोंका सर्वलोक है। अबन्धक नहीं हैं। तीन वेद, हास्यादि दो युगल, ५ जाति, ६ संस्थान, त्रस-स्थावरादि नव युगल तथा २ गोत्रोंमें इसी प्रकार है ! मिथ्यात्व के बन्धकोंका सर्वलोक है; अबन्धकोंका
विशेष-मिथ्यात्वके अबन्धक सासादन सम्यक्त्वी जीवोंकी अपेक्षा विहारवत्. स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक पदोंमें कई भाग है। मारणान्तिककी अपेक्षा १३ भाग है। (पृ० २८२ )।
देव-नरकायुके बन्धकों का क्षेत्रके समान भंग है ; अबन्धकोंका सर्वलोक है । तिर्यंचायुके बन्धकों, अबन्धकोंका सर्वलोक है। मनुष्यायुके बन्धकोंका दह, १३ वा सर्वलोक है । अबबन्धकोंका सर्वलोक है। चार आयुके बन्धकों, अबन्धकोंका सर्वलोक है। छह संहनन, दो विहायोगति, दो स्वर में इसी प्रकार है। नरकगति, नरकानपूर्वोके बन्धकोंके है। अबन्धकोंके सर्वलोक है। मनुष्यगति-तियंचगति, मनुष्यानुपूर्वी, तिर्यंचानुपूर्वीके बन्धकों, अबन्धकोंका सर्वलोक है। '
विशेषार्थ खुद्दाबन्धकी टीकामें लिखा है-स्वस्थान-स्वस्थान वेदना, कषाय, मारणान्तिक समुद्भात तथा उपपाद पदोंसे अतीत व वर्तमानकालकी अपेक्षा मति-श्रुत-अज्ञानी जीवोंने सर्वलोक स्पर्श किया है क्योंकि ऐसा स्वभावसे है। विहारवत् स्वस्थानपदसे अतीत व वर्तमानकालकी अपेक्षा यथाक्रमसे भाग व तिर्यग्लोकके संख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वैक्रियिक पदकी अपेक्षा वर्तमानकी प्ररूपणा क्षेत्रके समान है। अतीतकालकी अपेक्षा नई भाग स्पृष्ट है (पृ०४२६)।
देवगति, देवगत्यानुपूर्वीके बन्धकोंका १४, अबन्धकोंके सर्वलोक है । ४ गति, ४ आनुपूर्वीके बन्धकोंका सर्वलोक है ; अबन्धक नहीं हैं।
१. णाणाणुवादेण मदिअण्णाणी सुदअण्णाणी सत्थाण-समुग्घादउववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं? सन्वलोगो वा । -खु. बं.०,सू० १४६-१५०
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