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महाबंधे अंगोवंगं बंधगा,अबंधगा सबलोगो । गुब्बिय० अंगोवंगं बंधगा [अबंधगा] वेगुब्धिय० भंगो । दोण्णं बंधगा अबं० सव्वलोगो ।
२०६. एवं अन्भवसिद्धि० मिच्छादिविम्हि [वि ] भंगे धुविगाणं बंधगा अट्टतेरहभागो, सबलोगो वा । अबंधगा णस्थि । सादासाद० बंधगा अबंधगा अट्ठतेरहभागो, सबलोगो वा । दोण्णं बंधगा अट्ठतेरहभागो, सबलोगो वा। अबंधगा णत्थिः । एवं चदुणो०४ (?) थिराथिर-सुभासुभाणं । मिच्छत्त-बंधगा अट्ठतेरह. सव्वलोगो वा। अबंधगा अहवारहभागो । इत्थि. पुरिस० बंधगा अट्ठवारह-चोद्दस० । अबं० अट्टतेरह० सव्वलोगो वा । णस० बंधगा अट्टतेरह० सबलो० । अबंधगा अट्ठबारह । तिण्णं वेदाणं बंधगा अट्ठतेरह. सव्वलोगो वा । अबंधगा पत्थि । इत्थिवेदभंगो पंचिंदियजादि पंचसंठा० छरसंघ० तससुभग० आदेज० । णवुसगभंगो एइंदिय-हुंड संठा० थावरभग-अणादेजाणं । णवरि एइंदिय-थावर-बंधगा अढणव० सव्वलोगो वा । अबंधगा अदुवारहभागो । पत्तेगेण साधारणेण वेदभंगो । दोआयु० तिण्णिजादि-बंधगा खेत्तभंगो। अबंधगा अट्ठतेरह० सबलोगो वा । दोआयु० मणुसगदि० मणुसाणु० आदाव० उच्चा
औदारिक शरीरके बन्धकोंका सर्वलोक है : अबन्धकोंका है। वैक्रियिक शरीरके बन्धकोंका १३ है; अबन्धकोंका सर्वलोक है।
विशेष-उपपादकी अपेक्षा नीचेके ५ राजू तथा ऊपरके छह राजू इस प्रकार भाग स्पर्शन है । ( २८२ )।
दोनों शरीरके बन्धकोंका सर्वलोक है; अबन्धक नहीं हैं। औदारिक अंगोपांगके बन्धकों,अबन्धकोंका सर्वलोक है। वैक्रियिक अंगोपांगके बन्धकों [ अबन्धकों ] का वैक्रियिक शरीरके समान है अर्थात् बन्धकों का १३, अबन्धकों का सर्वलोक भंग है । दोनों के बन्धको अबन्धकोंका सर्वलोक है।
२०६. अभव्यसिद्धिको में और मिथ्यादृष्टियों में इसी प्रकार है। विभंगज्ञानमें-ध्रुव प्रकृतियों के बन्धको का कह, १३ वा सर्वलोक है । अबन्धक नहीं है।
विशेष-मेस्तलसे ऊपर ६ राजू तथा नीचे २ राजू इस प्रकार है तथा मेरुतलसे ऊपर ७ राजू तथा नीचे ६ राजू इस प्रकार १३ भाग है।
साता-असाताके बन्धको, अवन्धकों का ई, १३ वा सर्वलोक है। दोनों के बन्धकों का वई, १ वा सर्वलोक है; अवन्धक नहीं हैं। हास्य, रति, अरति, शोक ये ४ नोकषाय, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभमें इसी प्रकार है। मिथ्यात्व के बन्धकोंका ४, १३ वा सर्वलोक है; अबबन्धको का 5, १४ है । स्त्रीवेद-पुरुषवेदके बन्धको का ४, १९ हैं; अबन्धको का ६४, वा सर्वलोक है। नपुंसकवेदके बन्धको का कर, १३ वा सर्वलोक है; अबन्धकों का है, १४ है। तीनों वेदों के बन्धकों का 45,१३वासवेलोक है; अबन्धक नहीं है। पंचेन्द्रिय जाति, ५संस्थान, ६ संहनन, त्रस, सुभग, आदेयमें स्त्रीवेद का भंग है। एकेन्द्रिय हुंडक संस्थान, स्थावर, दुर्भग तथा अनादेयमें नपुंसकवेदका भंग है। विशेष, एकेन्द्रिय, स्थावरके बन्धकोंके , हवा सर्वलोक है ; अवन्धकोंके , १३ है । प्रत्येक तथा सामान्यसे वेदके समान भंग है । दो 'आयु, तीन जातिके बन्धकोंका क्षेत्रके समान भंग है ; अबन्धकोंका है, वा सर्वलोक है। '
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