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महाबंधे
२४६ भागो । दोण्णं बंधगा अट्ठबारहभागो। अबंधगा अठचोदसभागो। एवं ओरालियों अंगो० छस्संघ० (?) दोसर ।
२०४. कम्मइगस्स-पंचणा० छदंस बारसक० भयदु० तेजाक० वण्ण०४ अगु० उप० णिमि० पंचंतराइगाणं बंधगा सव्वलोगो। अबंधगा लोगस्स असं० असंखेजा वा भागा वा सव्वलोगो वा। थीणगिद्धि०३ अणंताणु०४ बंधगा सव्वलोगो। अबंधगा छच्चोइसभागों, केवलिभंगो । सादासाद-बंधगा अबंधगा सव्वलोगो । दोणं बंधगा सव्वलोगो । अबंधगा णत्थि । मिच्छत्तस्स बंधगा सबलोगो । अबंधगा गति के बन्धकोंके 15, १२ है , अबन्धकों के १,१३ है। दोनों बन्धकों के १६, १३ भाग है, अबन्धकों के भाग है। औदारिक अंगोपाग (?), ६ संहनन (?), दोस्वरमें इसी प्रकार जानना चाहिए।
विशेष-औदारिक अंगोपांग तथा ६ संहननका ५ संस्थान, सुभगादिके साथ वर्णन पूर्वमें हो चुका है। यहाँ पुनः उसका वर्णन किस दृष्टिसे किया गया, यह चिन्तनीय है ।
२०४. कार्मण काययोगीमें-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, १२ कषाय, भय-जुगुप्सा, तैजस कार्मण', वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण तथा ५ अन्तरायके बन्धकोंका सर्वलोक स्पर्शन है । अबन्धकोंका लोकका असंख्यातवाँ भाग, असंख्यात बहुभाग वा सर्वलोक है।
विशेष- कार्मण काययोगमें ज्ञानावरणादिके अबन्धक सयोगकेवलीके लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्श धवला'टीकामें नहीं कहा है, किन्तु यहाँ ज्ञानावरणादिके अबन्धकोंके लोकका असंख्यात भाग कहा है। प्रतर समुद्धातगत केवलीके कार्मण काययोगमें लोकके असंख्यात बहुभाग स्पर्श कहा है। कारण लोक पर्यन्त स्थित वातवलयोंमें केवली भगवान्के आत्मप्रदेश प्रतर समुद्भातमें प्रवेश नहीं करते थे। लोकपूरण समुद्रातमें सर्वलोक स्पर्श है। कारण चारों ओरसे व्याप्त वातवलयों में भी केवलीके आत्म-प्रदेश प्रविष्ट हो जाते हैं। (ध०टी०,फो० पृ० २७१)।
स्त्यानगृद्धित्रिक, अनन्तानुबन्धी ४ के बन्धकोंके सर्वलोक है, अवधकोंके कई वा केवली-भंग है।
विशेष—इस योगमें एक उपपाद पद होता है। यहाँ स्त्यानगृद्धि आदि के अबन्धक असंयतसम्यक्त्वी तिर्यंच मेरुतलसे ऊपर छह राजू जा करके उत्पन्न होते हैं । मेरुतलसे नीचे ५ राजू प्रमाण स्पर्शन क्षेत्र नहीं पाया जाता है, कारण नारकी असंयतसम्यक्त्वी जीवोंका तिर्यंचोंमें उपपाद नहीं होता है। (पृ. २७१ )।
साता-असाता वेदनीय के बन्धकों-अवन्धकोंका सर्वलोक है। दोनोंके बन्धकोंका सर्वलोक है ; अबन्धक नहीं है। मिथ्यात्वके बन्धकोंका सर्वलोक है, अबन्धकोंका
१ "कम्मइयकायजोगीसु मिच्छादिट्ठी ओघं ( सबलोगो ) । सजोगिकेवलीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जा भागा सव्वलोगो वा।" पदर-गद-केवलीहि लोगस्स असंखेज्जा भागा फोसिदा । लोग पेरंतट्ठिदवाद बलएसु अपविट्ठजीवपदे सत्तादो। लोगपूरणे सव्वलोगो फोसिदो, वादवलयेसु विपविट्ठजीवपदे सत्तादो। -ध० टी०, फो०, पृ०.२७१, सू० ९६, १०१ । २ एत्थ वि उववादपदमेक्कं चेव । -ध० टी०,फो०,पृ० २७१ ।
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