________________
पयडिबंधाहियारो
२४५ सादस्स बंधगा अबंधगा अट्ठ-तेरहभागो। दोण्णं बंधगा अट्ठतेरह । अबंधगा णत्थि । एवं हस्सादि-दोयुगलं, थिरादि-तिण्णियुगलं । इथि० पुरिसवेदाणं बंधगा अट्ठबारहभागो । अबंधगा अट्ठतेरहभागो। णqसग-वेदस्स बंधगा अट्ठ-तेरहभागो। अबंधगा अट्ठबारहभागो। तिण्णि वेदाणं अट्ठतेरहभागो। अबंधगा णत्थि । इत्थिभंगो पंचसंठा० ओरालि० अंगोल्छस्संघ सुभग० आदेज०। णqसगवेदभंगो हुंडसंठा० दूभग० अणादे० । साधारणेण वेदभंगो। दोआयु० मणुसग० मणुसाणु० आदावं तित्थयरं उच्चागोदं बंधगा अट्ठ-चोदसभागो । अबंधगा अट्ठतेरहभागो। तिरिक्खगदि-तिरिक्खाणु० णीचागोदं बंधगा अट्ट-तेरहभागो। अबंधगा अट्टचोद्दसभागो। दोण्णं बंधगा अढतेरह० भागो। अबंधगा णत्थि । एवं दोण्णं आउ० (णु०) ( ? ) दोगोद० । एइंदि० बंधगा अढणवचोदसभागो । अबंधगा अहवारहभागो। पंचिंदियबंधगा अट्ठबारह० । अबंधगा अढणवचोदसभागो। दोण्णं बंधगा अठ्ठतेरहभागो। अबंधगा णस्थि । एवं तस-थावर । उज्जोव-बंधगा-अबंधगा अटठतेरह-चोदसभागो वा । पसत्थवि० बंधगा अट्ठबारह० । अबंधगा अठ्ठ-तेरभागो अप्पसत्थवि० बंधगा अठ्ठबारहभागो। अबंधगा अठतेरह
___ साता, असानाके बन्धकों, अबन्धकोंके पह, १३ है। दोनोंके बन्धकोंके व है, १३ है; अबन्धक नहीं है । हास्य-रति, अरति-शोक, स्थिरादि तीन युगलमें इसी प्रकार जानना चाहिए। स्त्रीवेद, पुरुषवेद के वन्धकों के २१, ११ है अवन्धकोंके 4, १४ है । नपुंसकवेदके बन्धकोंके ,
है । अबन्धकों के वह, १४ है। तीनों वेदों के बन्धकोंके हैं, १३ हैअबन्धक नहीं हैं । ५ संस्थान, औदारिक अंगोपांग, ६ संहनन, सुभग, आदेय में स्त्रीवेदका भंग है । हुंडक संस्थान, दुर्भग, अनादेयमें नपुंसकवेद के समान भंग है । सामान्यसे वेदके समान भंग है। मनुष्यतिथंचायु, मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी, आतप, तीर्थंकर तथा उच्चगोत्रके बन्धकोंका है। अबन्धकोंका है, १४ भाग है।
विशेष-वैक्रियिक काययोगी अविरत सम्यक्त्वी विहारवत् स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक तथा मारणान्तिक समुद्भात-द्वारा ऊपर ६ राजू तथा नीचे २ राजू, इस प्रकार कर स्पर्शन करता है। तीर्थकर आदि प्रकृतियोंके अबन्धक मिथ्यात्वी जीवने मेरुतलसे नीचे ६ राजू तथा ऊपर ७ राजू इस प्रकार १३ भाग स्पर्श किया है।
तिर्यंचगति, नियंचानुपूर्वी तथा नीचगोत्रके बन्धकोंके कई, १३ भाग हैं , अबन्धकों के * भाग हैं। दोनों गतियोंके बन्धकों के पह, १३ हैं । अबन्धक नहीं हैं। दोनों आनुपूर्वी तथा दोनों गोत्रोंका इसी प्रकार वर्णन जानना चाहिए। एकेन्द्रियके बन्धकोंके है, अबन्धकोंके कई, ११ है । पंचेन्द्रिय जातिके बन्धकोंके ,१४ है, अबन्धकोंके , ई है। दोनोंके बन्धकोंके , १४ भाग है , अबन्धक नहीं है।
विशेष-क्रियिक काययोगियों के विकलत्रयका बन्ध नहीं होनेसे दोइन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चौइन्द्रिय जातिका वर्णन नहीं किया गया है।
स, स्थावरोंका इसी प्रकार जानना चाहिए। उद्योतके बन्धकों, अबन्धकोंका १४, १३ है। प्रशस्तविहायोगति के बन्धकोंका ८, १३ है , अबन्धकोंके ११, १३ है। अप्रशस्तविहायो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org