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________________ २४४ महाबंधे तेरहभागो। अबंधगा णथि । थीणगिद्धि०३ मिच्छत्त० अणंताणु०४ बंधगा अट्ठतेरह । अबंधगा अट्ट-चोदसभागो । णवरि मिच्छत्तस्स बंधगा अवारहभागो । सादा प्रत्येक निर्माण तथा ५ अन्तरायके बन्धकोंका ६४, १३ है। अबन्धक नहीं हैं। विशेषार्थ-काययोगी और औदारिक मिश्रकाययोगी जीव स्वस्थान, समुद्धात और उपपाद पदोंसे सर्वलोकका स्पर्शन करते हैं। वर्तमान तथा अतीत कालोंमें उन जीवोंके सर्वत्र गमनागमन और अवस्थानमें कोई विरोध नहीं है। औदारिक मिश्रकाय योगमें विहारवत् स्वस्थान, वैक्रियिक समुद्धात, तैजस समुद्वात और आहारक समुद्धात नहीं होते। औदारिक काययोगी जीव स्वस्थान और समुद्रात की अपेक्षा सर्वलोक स्पर्शन करते हैं। यहाँ उपपाद पद नहीं होता। वैक्रियिक काययोगी जीव स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्श करते हैं। अतीत कालेकी अपेक्षा कुछ कम नई भाग स्पर्श करते हैं। समुद्रातकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्श करते हैं। अतीत कालकी अपेक्षा वेदना, कषाय और वैक्रियिक समुद्रात पदोंसे उक्त वैक्रियिक काययोगी जीवोंने कहभाग स्पर्श किया है । मारणान्तिक समुद्धांत से कुछ कम १४ भाग स्पर्श किये हैं, क्योंकि मेरु मूलसे ऊपर सात और नीचे छह राजू आयामवाली लोक नालीको पूर्ण कर वैक्रियिक काययोगके साथ अतीत कालमें मारणान्तिक समुद्भातको प्राप्त जीव पाये जाते हैं । इस योगमें उपपाद नहीं है। बैंक्रियिक मिश्र काययोगी जीव स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्श करते हैं। इनके विहारवत् स्वस्थान नहीं होता। इस योगमें समुद्धात और उपपाद पद नहीं होते । आहारक काययोगी जीव स्वस्थान और समुद्रात पदांसे लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्श करते हैं । अतीत कालकी अपेक्षा स्वस्थान-स्वस्थान, विहारवत् स्वस्थान, वेदनासमुद्धात और कषायसमुद्रात पदोंसे आहारक काययोगी जीवोंने चार लोकोंके असंख्यातवें भाग और मानुष क्षेत्रके संख्यातवें भागका स्पर्श किया है। मारणान्तिक समुद्भातसे चार लोकोंके असं. ख्यातवें भाग और मानुष क्षेत्रसे असंख्यात क्षेत्रका स्पर्श किया है। यहाँ उपपाद पदका अभाव है। आहारक मिश्रकाययोगी जीव स्वस्थान पदोंसे लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्श करते हैं । उनके विहारवत् स्वस्थान पद नहीं होता है। समुद्भात और उपपाद पद भी नहीं होते हैं । (खुद्दाबंध,टीका,पृष्ठ ४१३-४१९)। विशेष-मिथ्यादृष्टि वैक्रियिक काययोगियोंने विहार वत् स्वस्थान, वेदना, कषाय तथा वैक्रियिकसमुद्रात पद परिणत जीवोंने ऊपर ६ राजू तथा मेरुतलसे नीचे २ राजू इस प्रकार व भाग स्पर्श किया है। मारणान्तिक समुद्भातकी अपेक्षा ऊपर ७ तथा नीचे ६ राजू , इस प्रकार १४ भाग स्पर्श किया है । ( ध० टी०,फो०,टी०,२६६ )। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी ४ के बन्धकोंका ६४, 3 है, अबन्धकोंका पाई है । विशेष, मिथ्यात्व के बन्धकोंका वई, १४ है। विशेष-स्त्यानगृद्धित्रिकादिके अबन्धक सम्यग्मिथ्यादृष्टि तथा अविरत सम्यक्त्वी विहारवत् स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक, मारणान्तिक परिणत जीवोंके ४ स्पशेन किया है। मिश्र गुणस्थानमें मारणान्तिक नहीं है । (ध० टी०,फो०, पृ० २६७)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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