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________________ पय डिबंधाहियारो २३७ १६८. बादरेइंदिय-पजत्तापजत्त-धुविगाणं बंधगा सबलोगो । अबंधगा पत्थि । सादासाद-बंधगा अबंधगा सबलोगो। दोण्णं पगदीणं बंधगा सबलोगो । अबंधगा णस्थि। एवं चदुणोकसा० परघादुस्सा. थिराथिरसुभासुभाणं । इथि० पुरिस० बंधगा लोगस्सं असंखेजदिभागो। अबंधगा सबलोगो। णवूस० बंधगा सव्वलोगो । अबंधगा लोगस्स संखेजदिभागो। एवं इत्थिभंगोतिरिक्खायु-चदुजादि-पंचसंठा० ओरालि. अंगो० छस्संघ० आदा०दोविहाय०तस-सुभग-दोसर-आदेज० । णवंसक-भंगो एइंदिय हुंडसंठा०थावर-भग-अणादेज० । मणुसायु-बंधगा लोगस्स असंखेजदिभागो । अबंधगा लोगस्स संखेजदिभागो सव्वलोगो वा। दो-आयु-बंधगा लोगस्स संखेजदिभागो। अबंधगा लोगस्स संखेजदिभागो, सव्वलोगो वा । एवं छस्संघदोविहा० दोसर० । तिरिक्खगदिबंधगा सव्वलोगो । अबंधगा लोगस्स असंखेजदिभागो । मणुसगदिबंधगा [लोगस्स] असंखेजदिभागो । अबंधगा सबलोगो। दोण्णं पगदीणं बंधगा सव्वलोगो । अबंधगा णस्थि । एवं दो-आणु० दो-गोदाणं । उजोवस्स बंधगा लोगस्स संखेजदिभागो, सत्तचोद्दसभागो वा । अबंधगा सव्वलोगो। एवं बादर-जस० । पञ्जत्ता-अपचन-पत्तेगं १६८. बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त, वादर एकन्द्रिय अपर्याप्तकों में --ध्रुव प्रकृतियों के बन्धकों. के सर्वलोक है; अबन्धक नहीं हैं। साता-असाताके बन्धकों-अबन्धकोंके सर्व लोक स्पर्शन है। दोनों प्रकृतियों के बन्धकोंके सर्वलोक है । अबन्धक नहीं हैं। हास्यादि चार नोकषाय, परघात, उच्छ्वास, स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभमें इसी प्रकार जानना चाहिए। स्त्रीवेद, पुरुषवेदके बन्धकोंके लोकका असंख्यात वाँ भाग, अबन्धकों के सर्वलोक है । नपुंसकवेदके बन्धकोंके सर्वलोक है तथा अबन्धकोंके लोकका संख्यातवाँ भाग है। नियंचायु, चार जाति, पाँच संस्थान, औदारिक अंगोपांग, छह संहनन, आतप, दो विहायोगति, त्रस, सुभग, दो स्वर तथा आदेश में स्त्रीवेदका भंग जानना चाहिए। एकेन्द्रिय, हुण्डकसंस्थान, स्थावर, दुर्भग तथा अनादेयमें नपुंसकवेदका भंग जानना चाहिए । मनुष्यायुके बन्धकोंका लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्शन है। अबन्धकोंका लोकका संख्यातवाँ भाग वा सर्वलोक है। मनुष्य-तियंचायुके बन्धकोंका लोकका संख्यात वाँ भाग है। अबन्धकोंका लोकका संख्यातवाँ भाग वा सर्वलोक है। छह संहनन, दो विहायोगति तथा दो स्वर में इसी प्रकार है । नियंचगति के बन्धकों के सर्वलोक है । अबन्धकोंके लोकका असंख्यातवाँ भाग है। मनुष्यगति के बन्धकों के [ लोकका ] असंख्यातवाँ भाग है , अबन्धकोंके सर्वलोक है। मनुष्यगति तिर्यंचगतिरूप दोनों प्रकृतियोंके बन्धकोंके सर्वलोक है । अबन्धक नहीं है। मनुष्य-तियं चानुपूर्वी तथा दो गोत्रोंमें इसी प्रकार है । उद्योतके बन्धकोंका लोकका संख्यातवाँ भाग वा भाग है। अबन्धकों के सर्वलोक है । बादर तथा १. बादरेइंदिया पज्जत्ता अपज्जत्ता सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स संखेज्जदिभागो। समुग्धादउववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? सव्वलोगो।-(५१-५४ सू०ख० बंध)। २. "बादरवाउपज्जत्तएहि केवडियं खेतं फोसिदं ? लोगस्स संवेज्जदिभागो सव्वलोगो वा ।"-पट्खं०, फो०, सू० ६६, ७२ । ३. "मारणंतिय उववादपरिणदेहि सव्वलोगो फोसिदो। एवं बादरतेउकाइयपज्जताणं पि वत्तव्वं । णवरि वेउब्वियस्स तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो वत्तव्यो ।'-ध० टी०, फो०,पृ० २५२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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