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पडबंधाहियारो
बताया है । पश्चात् उनका आयुके समान भंग कहा है । यह विषय चिन्तनीय है । इस प्रकार सर्वदेवों में अपना-अपना स्पर्शन निकाल लेना चाहिए ।
विशेष - भवनत्रिक में मिथ्यात्व तथा सासादन गुणस्थानकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवाँ भाग, वन, १४ वा ४ भाग है।' ये विहारवत् स्वस्थान, वेदना, कषाय, विक्रिया - पदके द्वारा उपरोक्त लोकका स्पर्शन करते हैं। मेरुतलसे दो राजू नीचे तथा सौधर्मस्वर्ग के विमान-ध्वजदण्ड पर्यन्त ऊपर डेढ़ राजू इस प्रकार स्वयमेव विहार करते हैं। ऊपर के देवों के प्रयोग भाग स्पर्शन है, कारण उपरिम देवोंके द्वारा ले जाये गये वे ४३ राजू तथा स्वनिमित्तसे ३३ जाते हैं । इस प्रकार है। मारणान्तिक समुद्धातकी अपेक्षा स्पर्शन करते हैं, क्योंकि मेरुमूलसे नीचे दो राजूमात्र मार्ग जाकर स्थित भवनवासी आदि देवोंका घनोद्धि वालय में स्थित जलकायिक जीवोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते समय व भाग स्पर्शन पाया जाता है ( ० बं०, टीका पृ० ३८० ) । सम्यग्मिध्यादृष्टि, असंयत सम्यग्दृष्टि देवों में अतीत-अनागत कालकी अपेक्षा वा भाग स्पर्शन है । उपपादकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवाँ भाग भवनत्रिकका स्पर्शन है। सौधर्मद्विकके देवोंका विहारवत् स्वस्थान, वेदना, कपाय, वैक्रियिकपदकी दृष्टि से आदि के दो गुणस्थानों में है । मारणान्तिकपद से परिणत उक्त गुणस्थानों में भाग है । अतीत उपपादकी अपेक्षा है। मिश्र तथा अविरत. गुणस्थान में है । अविरत सम्यक्त्वीके मारणान्तिककी अपेक्षा देशोन तथा अतीत उपपादकी अपेक्षा है । वर्तमानकालकी अपेक्षा उपपाद पद लोकका असंख्यातवाँ भाग कहा है ( खु० बं० ) ।
सनत्कुमारादि पाँच कल्लों में स्वस्थान स्वस्थानपदपरिणत देवोंने अतीतकाल में लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्श किया है। वर्तमानकालकी अपेक्षा भी लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्श किया है। बिहारवत् स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक तथा मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा है । उपपाद परिणत सनत्कुमार, माहेन्द्र कल्पवासी देवोंने देशोन, ब्रह्म ब्रह्मोत्तरबासी देवोंने देशोन डे, लान्तव कापिष्ठवासी देवोंने, शुक्र-महाशुक्रवासी देवोंने शतारसहस्रारवासी देवोंने व भाग स्पर्श किया है। विशेष, मिश्रगुणस्थानवर्ती देवोंके मारणान्तिक तथा उपपाद पद नहीं होते हैं।" आनत, प्राणत, आरण, अच्युतत्रासी देवोंका विहारवत् स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक तथा मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा देशोन भाग स्पर्शन है। मिश्रगुणस्थानमें मारणान्तिक तथा उपपादपद नहीं होते हैं । आनत प्राणत कल्पके
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१. " भवणवासिय वाणवेंतर जोदिसियदेवेसु मिच्छादिट्टि सासणसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो, अधुट्ठा वा अट्टणवचोद्द सभागा वा देसूणा ।" - षट्खं०, फो० सू० ४६-४७। २. " सम्मामिच्छादिट्टि असंजदसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो, अधुट्ठा वा अट्ठचोद्द्मभागा वा देसूणा ।" - षट्खं०, फो०, सू० ४८-४९ । ३. " सोधम्मीसाणकपवासियदेवेसु मिच्छादिट्टि पहुडि जाव असंजदसम्मादिट्टित्ति देवोघं ।" सू० ५० । ४. " सणक्कुमार पहुडि जाव सदारसहस्सारकप्पवासियदेवेषु मिच्छादिट्ठपहुडि जाव असंजदसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो अट्ठचोद्दसभागा वा देसूणा ।" - सू० ५१-५२ । ५. “आणद जात्रं आरणच्चुद कप्पवासियदेवेसु मिच्छाइट्टि पहूडि जाव असंजदसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो । छचोट्सभागा वा बेसूणा फोसिदा । णवगेवेज्जविमाणवासियदेवेसु मिच्छादिट्ठिप्प हुडि जाव असंजदसम्मादिट्ठी हि केवडियं खेतं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो । अणुद्दिस जाव सम्बट्टसिद्धिविमाणवासियदेवेसु असंजदसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो ।" - सू० ५३-५६ ।
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