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पयडिबंधाहियारो सुभग-आदेज-समचदु० भंगो। भग-अणादेजहुँडसंठाणभंगो। दोण्णं पगदीणं बंधगा तेरह० सव्वलो० । अबंधगा णस्थि । जसगित्तिस्स बंधगा सत्तचोदस० । अबंधगा तेरह ० सव्वलोगो । अजस० बंध० तेरह० सव्वलो० । अबंधगा सत्तचोद्दस० । दोण्णं पगदीणं बंधगा तेरह० सव्वलोगो । अबंधगा णत्थि। दो गोदाणं संठाण-भंगो।
१६३. पंचिंदियतिरिक्ख-अपज्जत्ता-पंचणा० णवदंस० मिच्छ० सोलसक० भयदु० तिण्णिसरीर-वण्ण०४ अगु० उप० णिमिण-पंचंतराइगाणं बंधगा लोगस्स असंखेजदिभागो सव्वलोगो वा। अबंधगा णस्थि । दोवेदणी० हस्सादि० दोयुगलथिरादि०४ बंधगा अबंधगा लोगस्स असंखेजदिभागो सव्वलोगो वा । दोण्हं पगदीणं बंधगा लोगस्स असंखेजदिभागो, सबलोगो वा। अबंधगा णस्थि । इथि० पुरिस० बंधगा खेत्तभंगो । अबंधगा लोगस्स असंखेजदिभागो सव्वलोगो वा । णवूस० बंधगा पडिलोमं भाणिदव्वं । तिणि वेदाणं बंधगा लोगस्स असंखे०, सबलोगो वा। अबंधगा णस्थि । इत्थिवेदभंगो दोआयु-मणुसगदि-चदुजादि-पंचसंठा० ओरालि.
हैं । सुभग तथा आदेयका समचतुरस्र संस्थानके समान भंग है। दुर्भग, अनादेयका हुण्डकसंस्थानके समान भंग है । सुभग, दुर्भग, आदेय, अनादेयके बन्धकोंका १३ वा सर्वलोक है; अबन्धक नहीं हैं । यशःकीर्तिके बन्धकोंके ३४ है, अबन्धकोंके १३ वा सर्वलोक है। अयश:कीर्ति के बन्धकोंके ११, सर्वलोक है । अबन्धकोंके १ है। यश कीर्ति-अयश कीर्तिके बन्धकोंके १३ वा सर्वलोक है : अबन्धक नहीं हैं।
विशेष-तिर्यचोंमें तीर्थंकरका बन्ध न होनेसे यहाँ उसका वर्णन नहीं किया गया है । दो गोत्रोंके विषयमें संस्थानके समान भंग है ।
१६३. पंचेन्द्रिय-तियंच-लब्ध्यपर्णप्तकोंमें-५ ज्ञानावरण, ९ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा-औदारिक-तैजस-कार्माण शरीर, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण तथा ५ अन्तरायके बन्धकोंके लोकका असंख्यातवाँ भाग वा सर्वलोक है। अबन्धक नहीं है। दो वेदनीय, हास्यादि दो युगल, स्थिरादि ४ के बन्धकों-अबन्धकोंका लोकके असंख्यातवें भाग वा सर्वलोक है। दोनों प्रकृतियों के बन्धकोंका लोकका असंख्यातवाँ भाग वा सर्वलोक है। अबन्धक नहीं है । स्त्री-पुरुप वेद के बन्धकोंका क्षेत्र-भंग है अर्थात् लोकका असंख्यातवाँ भाग है । अबन्धकोंका लोकके असंख्यातवें भाग वा सर्वलोक भंग है। नपुंसकवेदका प्रतिलोम क्रम है अर्थात् नपुंसकवेदके बन्धकोंका लोकका असंख्यातवाँ भाग वा सर्वलोक भंग है। अबधकोंका लोकका असंख्यातवाँ भाग है। तीनों वेदोंके बन्धकोंका लोकका असंख्यातवाँ भाग वा सर्वलोक है; अबन्धक नहीं है । दो आयु (मनुष्य-तियंचायु), मनुष्यगति, दोइंद्रियादि
पंचिदियतिरिक्खअपज्जत्तएहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो, सव्वलोगो वा।" षट्खंकफोक,सू० ३२, ३३ ।। पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिदियतिरिक्खपज्जत्त-पंविदियतिरिक्ख जोणिणिपंचिदियतिरिक्ख अपज्जत्ता सत्थाणेण केवडियं खेतं फोसिदं ? लोगत्स असंखेज्जदिभागो। समुग्धाद-उववादेहि केवडियं खेतं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो, सव्वलोगो वा -खु० बं०, सू० १४-१७ ।
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