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महाबंधे थीणगिद्धितिय-अणंताणु०४ बंधगा छच्चोदसभागो, अबंधगा खेत्तभंगो। सादासाद - बंधगा-अबंधगा छचोइसभागो । दोण्णं पगदीणं बंधगा छचोदसभागो, अबंधगा णत्थि। एवं सत्तणोक० छस्संठा-छस्संघ० दोविहा० थिरादिछयुगलं । मिच्छत्तबंधगा छच्चोइसभागो, अबंधगा पंचचोद्दसभागो। दोआयु० खेत्तभंगो । अबंधगा बच्चोदसभागा । एवं तित्थयरं । तिरिक्खगदिबंधगा छच्चोइस०, अबंधगा खेत्तभंगो। मणुसगदिबंधगा खेतभंगो । अबंधगा छच्चोइस० । दोण्णं पगदिबंधगा छच्चोदस० । अबंधगा णस्थि । एवं दोआणुपुव्वि दोगोदं च । उज्जोव० बंधगा अबंधगा छच्चोदस० । एवं सव्वणेरइयाणं। स्पर्शन है । ध्रुव प्रकृतियोंका सभी नारकी बन्ध करते हैं, अतः ध्रुव प्रकृति के बन्धकोंका स्पर्श कहा है।
स्त्यानगृद्धित्रिक तथा अनन्तानुबन्धी ४ के बन्धकोंके 4 भाग हैं, अबन्धकों के क्षेत्रके समान भंग हैं । अर्थात् लोकका असंख्यातवाँ भाग है । साता, असाताके बन्धकों,अबन्धकोंके पर हैं। दोनों प्रकृतियोंके बन्धकोंके छ हैं; अबन्धक नहीं हैं।
विशेष-नरकगतिमें साता अथवा असाताके पृथक्-पृथक रूपसे अबन्धककी अपेक्षा कर भाग कहा है। इसका अर्थ यह है कि साताके अबन्धक,किन्तु असाताके बन्धक अथवा असाताके अबन्धक,किन्तु साताके बन्धक जीवोंका सप्तम पृथ्वीकी अपेक्षा कर भाग है।।
भयद्विक बिना सात नोकषाय, छह संस्थान, छह संहनन, दो विहायोगति, स्थिरादि छह युगलमें इसी प्रकार है । मिथ्यात्वके बन्धकोंके व भाग है । अबन्धकोंके १४ भाग है।
विशेष-मिथ्यात्वके अबन्धक सासादन सम्यक्त्वी जीवों की अपेक्षा छठी पृथ्वीको दृष्टिसे मारणान्तिक समुद्रातमें ५४ भाग है । सातवीं पृथ्वीमें मिथ्यात्व गुणस्थानमें ही मरण करता है, अत: उसकी यहाँ अपेक्षा नहीं की गयी है।
दो आयु (मनुष्य-तिर्यंचायु) के बन्धकोंके क्षेत्रवत् भंग है अर्थात् लोकका असंख्यातवाँ भाग है। अबन्धकोंके 4 भाग है। तीर्थकर प्रकृतिके बन्धकों के लोकका असंख्यातवाँ भाग, अबन्धकोंके कर भाग है।
तिर्यंचगतिके बन्धकों के भाग है। अबन्धकोंके क्षेत्रवत् भंग है। मनुष्यगति के बन्धकोंके क्षेत्रसमान भंग है। अबन्धकोंके व भाग है। दोनों के बन्धकोंके कर भाग है। अबन्धक नहीं है । दो आनुपूर्वी ( मनुष्य-तिर्यंचानुपूर्वी ) तथा २ गोत्रों में भी इसी प्रकार भंग है। उद्योतके बन्धकों,अबन्धकोंका ४ भाग है।
इस प्रकार सर्व नारकियोंमें जानना चाहिए। विशेष, अपना-अपना स्पर्शन निकाल लेना चाहिए।
१. "णिरयगदीए णेरइएसु मिच्छादिट्ठोहि केवडियं खेतं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो, छ घोड्सभागा वा देखणा ।"-षट्खं०,फोसू० ११.१२। २. "सम्मामिच्छिादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीहि केवडियं क्षेत्तं फोसिदं ? लोगल्स असंखेज्जदि भागो।'-षदखं०, फोसू० १३, १४, १५ । ३. "विदियादि जाव छट्ठीए पुढवीए णेरइएसु मिच्छादिट्ठिसासणसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तौंफोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो। का सिण्णि चत्तारि पंच चोट्सभागा वा देसूणा ।" -घटखं०, फो०,सू० १७.२८ । ४. णेरइएसु सव्वेभंगा लोगस्स असंखेज्जदिभागे-खेत्ताणुगम०,पृ०.१८७।
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