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पयडिबंधाहियारो
... २२१ एवं चदुआणुपुब्बि० । ओरालि० बंधगा सबलोगो। अबंधगा बारहचोइसभागो वा, केवलिभंगं च । वेउब्वियस० बंधगा बारह० । अबंधगा सव्वलोगो । दोणं बंधगा सबलोगो। अबंधगा केवलिभंगो। ओरालिय. अंगो० बंधगा अंबंधगा सव्वलोगो । वेउब्बिय० अंगो० बंधगा बारहभागा वा । अबंधगा सव्वलोगो । दोअंगो० बंधगा अबंधगा सव्वलोगो । छस्संघ० परघादुस्सा. आदाउजो० दोविहा० दोसरबंधगा अवंधगा सव्वलोगो । तित्थय० बंधगा अट्टचोद्दसभागो वा । अबंधगा सव्वलोगो।
__ १६१. आदेसेण-गेरइएसु धुविगाणं बंधगा छचोदसभागो, अबंधगा णत्थि । सर्वलोक है। अबन्धकोंका केवली भंग है। चार आनुपूर्वी में इसी प्रकार जानना चाहिए। औदारिक शरीरके बन्धकोंका सर्वलोक है। अबन्धकोंके १ भाग, वा केवली भंग है। वैक्रियिक शरीर के बन्धकोंका १३ भाग, अबन्धकोंका सर्वलोक है। दोनों शरीरोंके बन्धकोंका सर्वलोक है, अबन्धकोंका केवली भंग है ।
विशेष-औदारिक शरीरका बन्ध चतुर्थ गुणस्थान पर्यन्त, वैक्रियिक शरीरका अपूर्वकरण छठे भाग पर्यन्त बन्ध होता है। दोनोंके अबन्धकोंके अयोगिकेवली पर्यन्त लोकका असंख्यात वाँ भाग है, सयोगी जिनकी अपेक्षा लोकका असंख्यात बहुभाग तथा सर्वलोक भी भंग है।
औदारिक अंगोपांगके बन्धकों,अबन्धकोंका सर्वलोक है। वैक्रियिक अंगोपांगके बन्धकोंका ३४ है, अबन्धकोंके सर्वलोक है । दोनों अंगोपांगोंके बन्धकों,अबन्धकोंका सर्वलोक है।
विशेष-वैक्रियिक शरीरके बन्धकों तथा औदारिक शरीरके अबन्धकोंका स्पर्शन ११ कहा है, किन्तु उसी प्रकार वैक्रियिक अंगोपांगके बन्धकों तथा औदारिक अंगोपांगके अबन्धकोंका १४ नहीं कहा है। इसका कारण यह है कि जिस प्रकार औदारिक शरीरका अबन्धक वैक्रियिक शरीरका बन्धक होता है अथवा वैक्रियिक शरीरका अबन्धक औदारिकका बन्धक होता है वैसा नियम औदारिक अंगोपांग और वैक्रियिक अंगोपांगका नहीं है। एकेन्द्रियमें अंगोपांगका अभाव होनेसे शरीरके समान यहाँ व्याप्ति नहीं है। ___छह संहनन, परघात, उच्छवास, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, दो स्वरके बन्धकों. अबन्धकोंका सर्वलोक स्पर्शन है। तीथकर प्रकृतिके बन्धकोंका र है। अबन्धकोंका सर्वलोक है।
विशेष-तीर्थकर प्रकृतिके बन्धक अविरतसम्यक्त्वीको अपेक्षा ६ कहा है । विहार'. वत् स्वस्थान, वेदना-कषाय वैक्रियिक-मारणान्तिक समुद्धात गत असंयतसम्यक्त्वी जीवोंमें मेरुके मूलसे ऊपर छह राजू तथा नीचे दो राजू प्रमाण स्पर्शन किया है (ध. टी.,पृ. १६७)।
१६१. आदेशसे-नारकियोंमें-ध्रुव प्रकृतियोंके बन्धकोंके ४ है; अबन्धक नहीं है।
विशेष-मारणान्तिक समुद्भात तथा उपपाद पदवाले मिध्यादृष्टि नारकियोंने अतीत काल में कर स्पर्श किया है। (पृ० १७५) सातवीं पृथ्वीके नारकीकी मारणान्तिक समुद्धात अथवा उपपादकी अपेक्षा कर्मभूमिया संज्ञी मनुष्य या तियचपर्याप्तपर्याय प्राप्तिकी दृष्टिसे छ राजू
१. असंजदसम्माइट्ठीहि विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय-वेउन्वियमारणंतिय समुग्धादगदेहि अट्टचोड्सभागा देसूणा फोसिदा । उवरि छ रज्जू हेट्ठा दोरज्जु त्ति -ध० टी०,पृ०१६७।
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