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________________ पडबंधाहियारो २१६ दोष्णं पगदीणं बंधगा सव्वलोगो, अबंधगा लोगस्स असंखेज दिमागों । श्रीणगिद्धितिय - अनंता ०४ बंधगा सव्वलोगो । अबंधगा अट्ठचोहसभागा वा केवलिभंगो । मिच्छत्तबंधगा सव्वलोगो, अबंधगा अट्ठबारस- चोहसभागा वा केवलिभंगो वा । अपच्चक्खाणा० ४ बंधगा सव्वलोगो, अबंधगा छचोदसभागा वा केवलिभंगं च । इत्थि० पुरिस० बन्धकों, अबन्धकोंने कितना क्षेत्र स्पर्शन किया है ? सर्वलोक । दोनों प्रकृतियोंके बन्धकोंने सर्वलोक स्पर्श किया है । अबन्धकोंने लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्श किया है । विशेष- दोनोंके अबन्धक अयोग केवलियों की अपेक्षा लोकका असंख्यातवाँ भाग है । त्यानगृद्धित्रिक, अनन्तानुबन्धी ४ के बन्धकोंके सर्वलोक, अबन्धकोंके अष्ट चतुर्दश भाग अर्थात् १४ अथवा केवली भंग है । अर्थात् लोकका असंख्यातवाँ भाग, असंख्यात बहुभाग अथवा सर्वलोक है । विशेषार्थ - स्त्यानगृ द्धित्रिक तथा अनन्तानुबन्धी ४ के अबन्धक सम्यग्मिथ्यादृष्टि असंयत- सम्यग्दृष्टि जीवोंकी अपेक्षा भाग कहा है । विहारवत्-स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैकिक समुद्घातकी अपेक्षा मिश्र गुणस्थानवर्ती जीवोंने देशोन १४ भाग स्पर्श किया है । विहारवत् स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक, मारणान्तिक समुद्धातकी अपेक्षा असंयतसम्यग्दृष्टियोंने ऊपर ६ राजू तथा नीचे दो, इस प्रकार देशोन १४ भाग स्पर्श किया है। मिश्रगुणस्थानमें मरणका अभाव होनेसे मारणान्तिक समुद्घातका वर्णन नहीं किया गया है । (० टी० पृ० १६६, १६७ ) । मिध्यात्व के बन्धकोंने सर्वलोक स्पर्शन किया है। अबन्धकोंमें ४, १४ अथवा केवलीभंग अर्थात् लोकका असंख्यातवाँ भाग, असंख्यात बहुभाग अथवा सर्व लोक है ।' विशेषार्थ - मिथ्यात्व के अबन्धक सासादन सम्यक्त्वी जीवोंने विहारवत् स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक समुद्धातकी अपेक्षा देशोन भाग स्पर्श किया है। मारणान्तिक समुद्धातकी अपेक्षा १३ भाग स्पर्श किया है। यह इस प्रकार है कि सुमेरु पर्वत के मूलभागसे लेकर ऊपर ईषत्प्राग्भार पृथ्वी तक सात राजू होते हैं और नीचे छठी पृथ्वी तक ५ राजू होते हैं । इस प्रकार भाग है। सातवीं पृथ्वी में मिथ्यात्व गुणस्थानमें ही मरण होनेसे छठवी पृथ्वी तकका ही उल्लेख किया गया है । ( ध० टी०, पृ० १६२ ) अप्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धकोंने सर्वलोक, अबन्धकोंने भाग वा केवलीभंग प्रमाण क्षेत्र स्पर्शन किया है। विशेषार्थ - अप्रत्याख्यानावरण ४ के अवन्धक देशसंयमी जीवोंने अतीत कालकी अपेक्षा मारणान्तिक समुद्धातकी दृष्टिसे देशोन भाग स्पर्श किया । यहाँ सुमेरुसे नीचे के एक हजार योजनसे और आरण-अच्युत विमानोंके उपरिम भागसे कम करना चाहिए ( पृ० १७० ) पूर्व में वर्तमानकाल विशिष्ट क्षेत्रका प्ररूपण किया जा चुका है, इसलिए यह सूत्र ( ८ ) अतीत काल सम्बन्धी है, यह बात जानी जानी है, किन्तु यह अनागत अर्थात् भविष्यकाल सम्बन्धी नहीं है; क्योंकि उसके साथ व्यवहारका अभाव है । अथवा पीछेके सभी सूत्र अतीत १. ओघेणमिच्छादिट्ठीहि केवडियं खेनं फोसिदं ? सन्त्रलोगो | सासणसम्मादिट्टीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो । अट्ट-बारह वोट्सभागा वा देसूणा । सम्मामिच्छाइट्टि असंजदसम्म इट्टी हि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो । अट्ठचोट्सभागा वा देसूणा - जी २, फो०, सू० २-६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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