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________________ महाबंधे २१८ पंचणा० छदंसणा० अट्ठक० भयदु० तेजाक० वण्ण०४ अगु० उप० णिमि० पंचंतराइगाणं बंधगेहि केवडियं खेत्त फोसिदं ? सव्वलोगो । अबंधगा लोगस्स असंखेजदिभागो, असंखेज्जा वा भागा वा, सव्वलोगो वा। सादबंधगा अबंधगा कैवडि[यं खेत फोसिदं ? सव्वलोगो। असादबंधगा अबंधगा केवडि खेत्तं फोसिदं ? सव्वलोगो। सव्वेसिं जीवाणं सेसाणं तह य पोग्गलाणं च । जं देदि विवरमखिलं तं लोए हवदि आयासं MEDIपंचास्तिकाय । जो सर्व जीवोंको, पुद्गल आदि शेष द्रव्योंको स्थान देता है, वह समस्त आकाश इस लोकमें होता है। इस स्पर्शनानुयोगद्वारको लक्ष्य कर धवलाकार यह शंका-समाधान करते हैं: शंका-यहाँ स्पर्शनानुयोग द्वार में वर्तमानकाल सम्बन्धी क्षेत्रकी प्ररूपणा भी सूत्रनिबद्ध ही देखी जाती है, इसलिए स्पर्शन अतीत काल विशिष्ट क्षेत्रका प्रतिपादन करनेवाला नहीं है ? किन्तु वर्तमान और अतीतकालसे विशिष्ट क्षेत्रका प्रतिपादन करनेवाला है। समाधान-यहाँ स्पर्शनानुयोगद्वारमें वर्तमानक्षेत्रकी प्ररूपणा नहीं की जा रही है, किन्तु पहले क्षेत्रानुयोगद्वार में प्ररूपित उस उस वर्तमान क्षेत्रको स्मरण कराकर अतीतकाल विशिष्ट क्षेत्र के प्रतिपादनार्थ उसका ग्रहण किया गया है। अतएव स्पर्शनानुयोग द्वार अतीतकालसे विशिष्ट क्षेत्रका ही प्रतिपादन करनेवाला है यह सिद्ध हुआ। (जी० फो० टीका पृ० १४६ ) ओघसे-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, प्रत्याख्यानावरणादि ८ कषाय, भयजुगुप्सा, तैजस-कार्माण, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, ५ अन्तरायके बन्धकोंने कितना क्षेत्र स्पर्शन किया है ? सर्वलोक स्पर्शन किया है। अबन्धकोंने लोकका असंख्यातवाँ भाग, असंख्यात बहुभाग वा सर्वलोक स्पर्शन किया है ।। विशेषार्थ-ज्ञानावरणादिके अबन्धक उपशान्तकषाय, क्षीणकषाय तथा अयोगकेवलीकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्शन कहा है। सयोगकेवलीकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवाँ भाग है। प्रतरसमुद्धातगत सयोगकेवलीकी अपेक्षा लोकका असंख्यात बहुभाग तथा लोकपूरण समुद्धातकी अपेक्षा सर्वलोक स्पर्शन है। साताके बन्धकों-अबन्धकोंने कितना क्षेत्र स्पर्शन किया है ? सर्वलोक । असाताके १. त्रिकालविषयार्थोपश्लेषणं स्पर्शनं मतम् । क्षेत्रादन्यत्वभाग्वर्तमानार्थश्लेषलक्षणात् ॥४१॥" - त० श्लो०,पृ० १६० । 'एदेसु फोसणेसु जीवखेत्तफोसणेण पयदं । अस्पर्शि स्पृश्यत इति स्पर्शनम् । फोसणस्स अणुगमो फोसणाणुगमो, तेण फोसणाणुगमेण । णिद्देसो कहणं वक्खाणमिदि एयट्ठो। सो दुविहो जहा पयई । ओघेण पिंडेण अभेदेणेत्ति एयट्ठो । आदेसेण भेदेण विसेसेणेत्ति समाणट्ठो।"-ध० टी०,फो०,पृ. १४४, १४५। क्षेत्रं निवासो वर्तमानकालविषयः । तदेव स्पर्शनं त्रिकालगोचरम् स. सि०,५-१० । निर्मातसंख्यस्य निवासविप्रतिपतेः क्षेत्राभिधानम् । अवस्थाविशेषस्य वैचित्र्यात त्रिकालविषयोपश्लेष निश्चयार्थ स्पर्शनम् । अवस्थाविशेषो विचित्रस्त्रयस्र - चतुरानादिस्तस्य त्रिकालविषयमपश्लेषगां स्पर्शनम् । कस्यचित क्षेत्रमेव स्पर्शनं कस्यचित् द्रव्यमेव, कस्यचिद्रज्जव: षडष्टी वेति । एक-सर्वजीवसन्निधो तनिश्च या तदुच्यते-त०रा०पू०२०। २. “पमत्तसंजदप्पहड़ि जाव अजोगिकेवली हि केवडियं खेतं फोसिदं ? होगस्स असंखेज्जदिभागो सजोगिकेपछी हि केडियं खेतं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जा वा भागा, सव्वलोगो वा ।"-षटर्ख०,फो०,सू० १७०, १७२ । “पंदरगदो केवली केवडिखेत्ते ? लोगस्स मसंखेज्जेसु भागेसु । लोगपूरणगदो केवली केवडिखेत्ते ? सव्वलोगे।"-ध० टी०,फो०,पृ० ५०, ५४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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