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________________ २१६ महाबंधे पुढवि० आउ० तेउ० बादरवणप्फदि पत्तेयाणं तेसिं चेव अपजत्ता, बादरवणप्फदिणिगोद-पजत्ता-अपजत्ता । णवरि यं हि लोगस्स संखेजदिभागोतं हि लोगस्स असंखेजदिभागों कादव्यो । बादरवाउकाइय-पजत्ते सव्वे भंगा लोगस्स संखेजदिभागे। एवं खेत्तं समत्तं । मुंजित इच्छाराशिको प्रमाणराशिसे अपवर्तित करनेपर दो बटे पाँच भाग कम उनहत्तर रूपोंसे धनलोकके भाजित करनेपर लन्ध एक भाग प्रमाण प्राप्त होता है। पुनः उसमें संख्यात योजन बाहल्य रूप जगप्रतर प्रमाण लोक पर्यन्त स्थित वात क्षेत्रको, संख्यात योजन बाहल्यरूप जग-प्रतर प्रमाण-ऐसे बादर जीवोंके आधारभूत आट पृथिवी क्षेत्रको और आठ पृथिवियोंके नीचे स्थिति संख्यात योजन बाहल्य रूप जग-प्रतर प्रमाण वातक्षेत्रको लाकर मिला देनेपर लोकके संख्यातवें भाग मात्र अनन्तानन्त बादर एकेन्द्रिय-पर्याप्त व बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंसे परिपूर्ण क्षेत्र होता है। इस कारण ये तीनों ही बादर एकेन्द्रिय स्वस्थानसे तीन लोकोंके संख्यात भागमें एवं मनुष्यलोक व तिर्यग्लोकसे असंख्यात गुणे छोत्रमें रहते हैं, ऐसा कहा है। -खु० बं०, पृ० ३२२, ३२३ । 'बादर वायुकायिक (पर्याप्तकों) और बादर वायुकायिक अपर्याप्तकोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए। बादर पृथ्वीकायिक, बादर अपकायिक, बादर तेजकायिक, बादर वनस्पतिकायिक, प्रत्येक तथा इनके अपर्याप्तकोंमें एवं बादर वनस्पतिकायिक-निगोदके पर्याप्त-अपर्याप्त भेदोंमें इसी प्रकार जानना जाहिए। इतना विशेष है कि जहाँ लोकका संख्यातवाँ भाग कहा है, वहाँ लोकका असंख्यातवाँ भाग करना चाहिये। 'बादर वायुकायिक पर्याप्तकोंमें सम्पूर्ण भंग लोकसे संख्यातवें भाग जानना चाहिए। इस प्रकार क्षेत्र प्ररूपणा समाप्त हुई। १. बादरपुढविकाइय-बादरआउकाइय-बादरतेउकाइय-बादरवणप्फदिकाइय-पत्तेयसरीरा तस्सेव अपज्जत्ता सत्थाणेण केवडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे। समग्घादेण उववादेण केवडिखेत्ते? सव्वलोगे। २. बादरपुढविकाइया बादराउकाइया बादरतेउकाइया बादरवणप्फदिकाइय-पत्तेयसरीरपज्जत्ता सत्थाणेण समग्घादेण उववादेण केवडिखेते? लोगस्स असंखेज्जदिभागे। बादरवाउकाइया तस्सेत्र अपज्जत्ता सत्थाणेण केवडिखेत्ते : लोगस्स असंखेज्जदिभागे। समुग्घादेण उववादेण केवडिखेत्ते? सबलोगेवणप्फदिकाइय-णिगोदजीवा सुहमवणप्फदिकाइय-सुहमणिगोदजीवा तस्सेव पज्जत्त-अपज्जत्ता सत्थाणेण समुग्धादेण उववादेण केवडिखेत्ते ? सम्बलोए । बादर-वणफदिकाइया बादर-णिगोदजीवा तस्सेव पज्जत्ता अपनत्ता सत्याणेण केवडिखेत्ते? लोगस्स असंखेज्जदिभागे। समुग्धादेण उववादेण केवडिखेत्ते? सब्बलोए।-३४-४६ सूत्र,खु० बं०। ४. बादरवाउपज्जत्ता सत्याणेण समुग्धादेण उववादेण केवडिखेत्ते ? लोगस्स संखेज्जदिभागे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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