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________________ पयडिबंधाहियारो २१५ इत्थि-पुरिस० बंधगा केवडिखेत्ते ? लोगस्स संखेज्जदिभागे। अबंधगा सव्वलोगे । णqस बंधगा केवडिखेत्त ? सव्वलोगे । अबंधगा लोगस्त संखेजदिभागे । तिण्णिवेदाणं बंधगा सबलोगे । अबंधगा णत्थि। एवं इस्थिभंगो चदुजादि-पंचसंठा० ओरालि. अंगो० छस्संघ० आदाउज्जो० दोविहा० तस-बादर-दोसर-सुभग-आदेज-जसगित्ति । णqसगभंगो एइंदि० हुंडसंठा० थावर-भग-अणादेज-अजसगित्ति । हस्सादि४ बंधगा अबंधगा सव्वलोगे । हस्सादिदोयुगलं बंधगा सव्वलोगे, अबंधगा णत्थि । एवं परघादुस्सास-पज्जत्ता-अपजत्त-पत्तेय-साधारण-थिराथिरसुभासुभा ति। तिरिक्खायु-बंधगा केवडिखेत्ते ? लोगस्स खेजदिभागे। अबंधगा सव्वलोगे। मणुसायु-बंधगा केवडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेजदिभागे। अबंधगा सव्वलोगे। दोआयु तिरिक्खायु-भंगो। तिरिक्खगदितियं बंधगा सव्वलोगे । अबंधगा लोगस्स असंखेजदिभागे । मणुसगदितियं मणुसायुभंगो। दोगदि-दोआणु पुग्वि-दोगोदं बंधगा के० खेत्ते ? सव्वलोगे । अबंधगा णत्थि । सुहुमबंधगा सव्वलोगे। अबंधगा लोगस्स असंखेजदिभागे। एवं पत्तेगेण साधारणेण वि वेदणीयभंगो । एवं बादरवाउ० बादरवाउ० अपजत्ताणं । एवं चेव बादरलोकमें पाये जाते हैं । अबंधक नहीं है। स्त्रीवेद, पुरुषवेदके बंधक कितने क्षेत्रमें है। लोकके संख्यातवें भागमें । अबंधक सर्वलोकमें है। नपुंसकवेदके बंधक कितने क्षेत्रमें है ? सर्वलोकमें। अबंधक लोकके संख्यातवें भागमें पाये जाते हैं । तीनों वेदोंके बंधक सर्वलोकमें पाये जाते हैं। अबंधक नहीं हैं। ४ जाति, ५ संस्थान, औदारिक अंगोपांग, ६ संहनन, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, त्रस, बादर, दो स्वर, सुभग, आदेय, यश-कीर्ति पर्यन्त स्त्रीवेदके समान भंग जानना चाहिए। एकेन्द्रिय जाति, हुंडक संस्थान, स्थावर, दुर्भग, अनादेय, अयश कीर्ति में नपुंसकवेदका भंग जानना चाहिए । हास्यादि चारके बंधक-अबंधक सर्वलोकमें पाये जाते हैं। हास्यादि दो युगलोंके बंधक सर्वलोक पाये जाते हैं । अबंधक नहीं हैं। इस प्रकार परघात, उच्छ्वास, पर्याप्तक, अपर्याप्तक, प्रत्येक, साधारण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ पर्यन्त जानना चाहिए । तियच आयुके बंधक कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके संख्यातवें भागमें । अबंधक सर्वलोकमें पाये जाते हैं। मनुष्य आयुके बंधक कितने क्षेत्रमें पाये जाते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागमें ; अबंधक सर्वलोकमें पाये जाते हैं। दो आयुमें तिथंच आयुका भंग जानना चाहिए। तियंचगति त्रिकके बंधक सर्वलोकमें और अबंधक लोकके असंख्यातवें भागमें पाये जाते हैं। मनुष्यगतित्रिकमें मनुष्य आयुके समान भंग जानना चाहिए । २ गति, २ आनुपूर्वी, २ गोत्रके बंधक कितने छोत्रमें हैं ? सर्वलोकमें हैं ; अबंधक नहीं हैं । सूक्ष्मके बंधक सर्वलोकमें और अबंधक लोकके असंख्यातवें भागमें पाये जाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक और साधारणसे वेदनीयके समान भंग जानना चाहिए। _ विशेषार्थ-बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तक, अपर्याप्तक जीवोंका क्षेत्र लोकका संख्यात भाग कहा है, उसका स्पष्टीकरण'धवला'टीकामें इस प्रकार किया गया है : मन्दर पर्वतके मूल भागसे ऊपर शतार-सहस्रार कल्प पर्यन्त पाँच राजू ऊँची समचतुष्कोण लोकवाली वायुसे परिपूर्ण है। उसमें उनचास प्रतर राजुओंका यदि एक जगप्रतर प्राप्त होता है, तो पाँच प्रतर राजुओंका कितना जगत् प्रतर प्राप्त होगा इस प्रकार फलराशिसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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