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________________ पय डिबंधाहियारो २०५ अबंधगा णस्थि । सेसं पत्तेगेण ओधिभंगो। साधारणे अबंधगा णत्थि | आयुवजरिसहाणं ओधिभंगो। सासणे-मणुसायुबंधगा संखेजा । सेसभंगा असंखेज्जा । सम्मामिच्छे-सव्वभंगा असंखेज्जा । अणाहारगेसु-पंचणा० णवदंस० मिच्छत्त-सोलसक० भयदु० तेजाक० वण्ण०४ अगुरु०४ आदाउज्जो णिमि० पंचंतराइगाणं बंधगा अबंधगा अणंता । सादासादबंधगा अबंधगा अणंता । एवं सेसाणं पि । णवरि देवगदिपंचगं बंधगा संखेज्जा, अबंधगा अणंता। एवं परिमाणं समत्तं अबन्धक नहीं हैं । शेष प्रकृतियोंका प्रत्येक रूपसे अवधिज्ञानके समान भंग है। सामान्यसे अबन्धक नहीं है । आयु तथा वनवृषभसंहननका अवधिज्ञानके समान भंग जानना चाहिए। सासादनमें-मनुष्यायुके बन्धक संख्यात है। शेष प्रकृतियोंके भंग असंख्यात हैं । सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंमें - सर्व भंग असंख्यात जानना चाहिए। अनाहारकोंमें - ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजस-कार्मण , वर्ण ४. अगुरुलघु ४, आतप, उद्योत, निर्माण तथा ५ अन्तरायोंके बन्धक अबन्धक अनन्त हैं । साता-असानाके बन्धकअबन्धक अनन्त हैं। इसी प्रकार शेष प्रकृतियोंमें भी जानना चाहिए । विशेष यह है कि देवगति ५ के बन्धक संख्यात हैं, अबन्धक अनन्त हैं। इस प्रकार परिमाणानुगम समाप्त हुआ। १. आहाराणुवादेण आहारा अणाहारा दवपमाणेण केवडिया ? अणंता। अणंताणताहि ओसप्पिणि उस्तप्पिणीहिन अवहिरति कालेण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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