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पडबंधाहियारो
सामाइय० छेदो० परिहार • सुहुमसंप० यथाक्खाद० ।
१८२ इत्थवेदेसु - पंचणा० चदुदंस० चदुसंज० पंचंतराव बंधगा असंखेजा । अबंधगा णत्थि । सेसं पंचिंदियमंगो । णवरि दोवेदणीय-जस अजस० दोगोदाणं बंधा असंखेजा । अबंधगा णत्थि । तित्थयरकम्मस्स बंधगा संखेज्जा, अबंधगा असंखेजा । एवं पुरिसवेदे । णवरि तित्थयरस्स बंधगा अबंधगा असंखेजा । णवुंस०पंचणा० चदुदंस० [ चदुसंज० ] पंचं तराइगाणं० अनंता । अबंधगा णत्थि । सेसं काजोगिभंगो । वरि जस - अजस० दोगोदाणं अबंधगा णत्थि । एवं कोधादि०४ | raft अपणो विगाणं णादन्याओ ।
१८३. मदि० सुद० - धुविगाणं बंधगा अनंता । अबंधगा णत्थि । मिच्छत्तस्स बंधगा अनंता । अबंधगा असंखेजा । सेसं तिरिक्खोघं । एवं अब्भ० सिद्धि० मिच्छादि० असणित्ति । णवरि मिच्छत्तस्स अबंधगा णत्थि । अवगदवेदेसु-पंचणा०
'मन:पर्ययज्ञान, संयत, सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय, यथाख्यातसंयत में इसी प्रकार जानना चाहिए ।
विशेषार्थ - संयत सामायिक छेदोपस्थापन-शुद्धिसंयत कोटि पृथक्त्व प्रमाण हैं। परि हारविशुद्धिसंयत सहस्रपृथक्त्व है। सूक्ष्मसाम्पराय शुद्धिसंयत शतपृथक्त्व हैं । यथाख्यातविहारशुद्धिसंयत शतसहस्र पृथक्त्व प्रमाण है ।
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१८२. स्त्रीवेद में - ५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, ४ संज्वलन और ५ अन्तरायके बन्धक असंख्यात हैं, अबन्धक नहीं हैं। शेष प्रकृतियोंका पंचेन्द्रिय के समान वर्णन है। विशेष, दो वेदनीय, यशःकीर्ति, अयशःकीर्ति, दो गोत्रोंके बन्धक असंख्यात हैं; अबन्धक नहीं हैं । तीर्थंकर कर्मके बन्धक संख्यात हैं, अबन्धक असंख्यात हैं । पुरुषवेद में इसी प्रकार है । विशेप, तीर्थंकर के बन्धक,अबन्धक असंख्यात हैं । नपुंसक वेद में - ५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण] [४ संज्वलन] ५ अन्तराय के बन्धक अनन्त हैं; अबन्धक नहीं हैं। शेष प्रकृतियों में काययोगी के समान भंग है । विशेष यह है कि यशःकीर्ति, अयशःकीर्ति तथा दो गोत्रोंके अबन्धक नहीं हैं। क्रोधादि ४ में इसी प्रकार है । विशेष, अपनी ध्रुव प्रकृतियोंकी विशेषताको यहाँ जान लेना चाहिए ।
१८३. मत्यज्ञान, श्रुताज्ञानमें- ध्रुवप्रकृतियों के बन्धक अनन्त हैं; अवन्धक नहीं हैं । मिथ्यात्व के बन्धक अनन्त हैं, अबन्धक असंख्यात हैं ।
विशेष - अवन्धक सासादन सम्यक्त्वी जीवोंकी अपेक्षा यह गणना की गयी हैं। शेप प्रकृतियोंका तिचांके ओघवत् भंग जानना चाहिए । अभव्यसिद्धिक, मिध्यादृष्टि, असंज्ञी में इसी प्रकार जानना चाहिए। विशेष, यहाँ
१. मणपज्जवणाणी दव्वपमाणेण केवडिया ? संखेज्जा । केवलणाणी दव्वपमाणेण केवडिया ? अनंता ॥ - खु०चं० । २. संजमाणुवादेग संजदा सामाइयच्छेदोवट्टावण सुद्धि-संजदा दव्व माण केवडिया ? कोडिधत्तं । परिहारसुद्धिसंजदा दव्वपमाणेण केवडिया ? सहस्सपुधत्तं । सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदा पण केवडिया ? सदधतं । जहाक्खादविहारसुद्धिसंजदा दव्वपमाणेण केवडिया ? सदसहसपुधत्तं । संजदासंदा माग केवडिया ? पलिदोवमस्स अमंग्वेज्जदिभागो || - खु० नं०सू० १२८-१३७ ।
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