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________________ पयडिबंधाहियारो - १९९ १८१. एवं पंचमण. पंचवचि० चक्खुदंस० सणित्ति । णवरि दोवेढणीएसु अबंधगा णस्थि । काजोगीसु-पंचणा० छदंसणा० अट्ठकसा० भयदु० तेजाक० वग०४ अगु० उप० णिमि० पंचंतराइगाणं बंधगा अणंता, अबंधगा संखेजा। थीणगिद्धितियमिच्छत्त-अढकसाय-ओरालियसरीराणं बंधगा अणंता, अबंधगा असंखेजा। सादासादबंधगा अबंधगा अणंता। दोणं वेदणीयाणं बंधगा अणंता। अबंधगा णत्थि। तिण्णिआयुवेगुम्वियछक्क-आहारदुग-तित्थयरं च ओघं । सेसाणं पत्तेगेण बंधगा अबंधगा अणंता । साधारणेण बंधगा अणंता । अबंधगा संखेजा। चदुआयु-दोअंगोवंग-छस्संघ० परघाहैं १ बन्धक असंख्यात हैं, अबन्धक संख्यात हैं। विशेष-अयोगकेवली गुणस्थानमें वेदनीययुगलके अबन्धकको अपेक्षा 'संख्यात' प्रमाण कहा है। शेष प्रकृतियोंका प्रत्येक तथा सामान्यसे वेदनीयके समान पूर्ववत् भंग जानना चाहिए। विशेष, ४ आयु, दो अंगोपांग, ६ संहनन, २ विहायोगति, २ स्वरके प्रत्येक तथा साधारणसे बन्धक,अबन्धक कितने हैं ? असंख्यात हैं । आहारकद्विकके मनुष्योंके ओघवत् हैं अर्थात् बन्धक संख्यात, अबन्धक असंख्यात हैं। १८१. पाँच मन, ५ वचनयोग, चक्षुदर्शन और संज्ञीमें इसी प्रकार है। विशेष, यहाँ दो वेदनीयों में अबन्धक नहीं होते हैं। विशेष-वेदनीय युगलके अबन्धक अयोगकेवली होते हैं, वहाँ इन मार्गणाओंका अभाव है। काययोगियोंमें - ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, ८ कषाय (प्रत्याख्यानावरण, संज्वलन) भय, जगप्सा, तैजस-कार्मणः, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण तथा ५ अन्तरायोंके बन्धक अनन्त हैं, अबन्धक संख्यात हैं। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, ८ कपाय ( अनन्तानुबन्धी तथा अप्रत्याख्यानावरण ) तथा औदारिक शरीरके बन्धक अनन्त हैं , अबन्धक असंख्यात हैं। साता-असाताके बन्धक और अबन्धक अनन्त हैं। दोनों वेदनीयोंके बन्धक अनन्त हैं। अबन्धक नहीं हैं। विशेष-साता और असाता प्रतिपक्षी प्रकृतियाँ हैं। अतः एकके बन्धमें दूसरीका अबन्ध होगा इससे पृथक्-पृथक्के अबन्धक भी अनन्त बताये गये हैं। उभयके यहाँ अबन्धक नहीं होते हैं। तीन आयु, वैक्रियिकषटक, आहारकद्विक तथा तीर्थंकरके बन्धक अबन्धक ओघवत् जानने चाहिए। अर्थात् बन्धक असंख्यात हैं, आहारकद्विकके वन्धक संख्यात हैं; किन्तु अबन्धक अनन्त हैं। शेष प्रकृतियोंके प्रत्येकसे बन्धक,अबन्धक अनन्त हैं। सामान्यसे बन्धक १. कायजोगि-ओरालियकायजोगि-ओरालियमिस्सकायजोगि-कम्मइकायजोगी दव्वपमाणेण केवडिया? अणंता ।। - खु० बं०० ६०-६१। २. इदियाणुवादेण एइंदिया बादरा सुहमा पज्जत्ता अपज्जत्ता दन्वपमाणेण केवडिया ? अणंता। वीइंदिय-तीइंदिय-चउरिदिय-पंचिदिय। तस्सेव पज्जता अपज्जत्ता दश्वपमाणेण केवडिया ? असंखेज्जा ॥-खुद्दाबन्ध,दव्वपमाणाणुगम ।वही, पृ. २६७-६६ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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