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महाबंधे पंचिंदि० ओरालि० अंगोछस्संघ० आदा-उजोव-दोविहाय० तसथावर-दोसराणं बंधगा अबंधगा असंखेजा । सेसाणं णिरयभंगो। सव्वट्ठ सव्वभंगा संखेजा।
१८०. पंचिंदि०-तस०२-पंचणा० छदसणा० अट्ठकसाय० भयदु० तेजाक० वण्ण०४ अगु० उप० णिमि० पंचंतराइगाणं बंधगा केत्तिया ? असंखेजा । अबंधगा केत्तिया ? संखेजा । थीणगिद्वितिय-मिच्छत्त-अट्ठकसायाणं बंधगा अबंधगा केत्तिया ? असंखेजा। एवं परघादुस्सास-आदाउजोव-तित्थयराणं । सादासाद-बंधगा अबंधगा केतिया ? असंखेजा। दोण्णं वेदणीयाणं बंधगा केत्तिया? असंखेजा । अबंधगा संखेजा । एवं सेसाणं पगदीणं पत्तेगेण साधारणेण वि वेदणीयभंगो। णवरि चदुआयु दो अंगो० छस्संघ दोविहाय० दोसराणं पत्तेगेण साधारणेण वि बंधगा अबंधगा केत्तिया ? असंखेजा । आहारदुगं मणुसोपं । सौधर्म ईशान स्वर्ग तक विशेष जानना चाहिए। एकेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय जाति, औदारिक अंगोपांग, ६ संहनन, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, त्रस, स्थावर तथा दो स्वरके बन्धक अबन्धक असंख्यात हैं। शेष प्रकृतियोंमें नारकियोंके समान भंग है। सर्वार्थसिद्धिमें सम्पूर्ण भंग संख्यात है।
विशेषार्थ 'धवलाटीकामें मनुष्यनियोंसे तिगुनी संख्या सर्वार्थसिद्धिके देवोंकी कही गयी है । 'जीवट्ठाण'सूत्रमें यह संख्या संख्यात कही है। 'खुद्दाबन्धकी मुद्रित प्रतिके हिन्दी अनुवाद ( पृ० २६७) में यह संख्या 'असंखेज्जा' कही है। प्रतीत होता है कि 'संखेज्जा' पाठ सम्यक् होगा। महाबन्धमें संख्या 'संख्यात' कही है।
१०. पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रियपर्याप्तक, त्रस, त्रसपर्याप्तकोंमें-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, ८ कषाय अर्थात् प्रत्याख्यानावरण तथा संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तैजस, कार्मण', वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण तथा ५ अन्तरायों के बन्धक कितने हैं ? असंख्यात हैं। अबन्धक कितने हैं ? संख्यात हैं । स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, आठ कषायके बन्धक-अबन्धक कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत तथा तीर्थकर में भी हैं। साता-असाताके बन्धक अबन्धक कितने हैं ? असंख्यात हैं। दोनों वेदनीयके बन्धक कितने
१. “सम्वट्ट सिद्धिविमाणवासियदेवा दव्वपमाणेण केवडिया ? संखेज्जा।"-षटखं०,द० सू०७३। २. देवगदीए देवादवपमाणेण केवडिया? असंखेज्जा। भवणवासियदेवा दवंपमाणेण केवडिया? असंखेज्जा । वाणवेंतरदेवा दवपमाणेण केवडिया? असंखेज्जा। जोदिसिया देवा देवगदिभंगो। सोहम्मीसाणकप्पवासियदेवा दव्वपमाणेण केवडिया? असंखेज्जा । सणकुमार जाव सदर-सहस्सारकप्पवासियदेवा सत्तमपुढवीभंगो । आणद जाव अबराइदविमाणवासियदेवा दव्वपमाणेण केवडिया? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। सम्वसिद्धिविमाणवासियदेवा दव्वपमाणेण केवडिया? असंखेज्जा । -खद्दाबन्ध। सम्बदसिद्धिविमाणवासियदेवा दन्वपमाणेण केवडिया? संखेज्जा। मणसिणिरासीदो तिउणमेत्ता हवंति ॥ - जीवट्ठाण, ताम्रपत्रप्रति पृ० २८६। ३. "पंचिदिय-पंचिदियपज्जत्तएसु मिच्छादिट्टी दव्वपमाणेण केवडिया ? असंखेज्जा।"-पट्खं०,द० सू०८०। "तसकाइय-तसकाइयपज्जत्तएसु मिच्छादिट्ठी दव्वपमाणेण केवडिया ? असंखेज्जा।" -पट्खं०,
द० सू०६८ , पु. ३, पृ. ३६० Jain Education International For Private & Personal Use Only
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