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पयडिबंधाहियारो
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ओरालिय० ओरालि० अंगो० दोआणुपुव्वीणं बंधगा अबंधगा केत्तिया ? अनंता । चदुआयु-चदुगदि- दोसरीर दोअंगो० चदुआणुपुच्चीणं बंधगा अबंधगा केत्तिया ? अनंता । आहार दुस्स बंधगा केत्तिया ? संखेज्जा । अबंधगा केत्तिया ? अनंता ।
१७५. आदेसेण - णिरयेसु -धुविगाणं बंधगा के त्तिया ? असंखेजा । अबंधगा णत्थि । थीणगिद्भितिग-मिच्छत्त-अनंताणुबंधि०४ तिरिक्खायु-उजोव - तित्थयराणं ( 2 ) बंधगा अबंधगा असंखेजा । सादासादबंधगा असंखेजा । दोष्णं वेदणीयाणं बंधगा केत्तिया ? असंखेजा । अबंधगा णत्थि । मणुसायुबंधगा केत्तिया ? संखेजा । अबंधगा केत्तिया ? असंखेजा । सेसाणं परियत्तमाणियाणं वेदणीयभंगो कादव्वो । एवं सवर गाणं ।
१७६. तिरिक्खेसु-धुविगाणं बंधगा केत्तिया ? अनंता । अबंधगा णत्थि । थो गिद्धि तिग-मिच्छत्त- अडकसाय - ओरालिय सरीराणं बंधगा केत्तिया ? अनंता । अबंधगा असंखेजा । सादासादबंधगा - अबंधगा केत्तिया ? अनंता । दोष्णं वेदणीयाणं
ख्यात हैं । अबम्धक कितने हैं ? अनन्त हैं । तिर्यंचायु, दो गति ( तिर्यंच - मनुष्यगति), औदाfre शरीर, औदारिक अंगोपांग, २ आनुपूर्वी ( तिर्यंच - मनुष्यानुपूर्वी ) के बन्धक - अबन्धक कितने हैं ? अनन्त हैं । चार आयु, ४ गति, दो शरीर ( औदारिक, वैक्रियिक), दो अंगोपांग ( औदारिक- वैकियिक अंगोपांग ), ४ आनुपूर्वीके बन्धक - अबन्धक कितने हैं ? अनन्त हैं । आहारकद्विकके बन्धक कितने हैं ? संख्यात हैं । अबन्धक कितने हैं ? अनन्त हैं ।
विशेष - ' आहारकद्विकके बन्धक अप्रमत्त संयत होते हैं। उनकी संख्या संख्यात है ।
१७५. आदेश से - नरकगति में, ध्रुव प्रकृतियों के बन्धक कितने हैं ? असंख्यात हैं । अबन्धक नहीं है । स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व अनन्तानुबन्धी ४, तिर्यंचायु, उद्योत तथा तीर्थकरके बन्धक अबन्धक कितने हैं ? असंख्यात हैं । साता असाताके वन्धक असंख्यात हैं । दोनों वेदनीयके बन्धक कितने हैं ? असंख्यात हैं । अबन्धक नहीं हैं । मनुष्यायुके बन्धक कितने हैं ? संख्यात हैं । अबन्धक कितने हैं ? असंख्यात हैं। शेष परिवर्तमान प्रकृतियों में वेदनीयके समान भंग जानना चाहिए। सम्पूर्ण नारकियों में इसी प्रकार जानना चाहिए ।
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१७६. तिर्यंचगति में प्रकृतियोंके बन्धक कितने हैं ? अनन्त हैं । अबन्धक नहीं हैं । स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व अनन्तानुबन्धी४, अप्रत्याख्यानावरण ४, तथा औदारिक शरीर बन्धक कितने हैं ? अनन्त हैं । अवन्धक असंख्यात हैं । साता-असाताके बन्धक
१. "अप्पमत्त - संजदा दव्वपमाणेण केवडिया ? संखेज्जा ॥ " • घट्खं०, ० द० सू० ८ । २. "घादितिमिच्छकसाया भयतेज गुरुदुगणिमिणवण्णचओ । सत्तेतालबुवाणं चदुधा सेसाणयं च दुधा ॥ " -गो० क०,गा० १२४ । ३. "णिरयगईए णेरइएंसु मिच्छाइट्टी दव्वपमाणेण केवडिया ? असंखेज्जा ।”— पटखं०, ८० सू० १५ । ४. दव्वषमाणानुगमेण गदियाणुवादेण णिरयगदीए णेरइया दव्वपमाणेण केवडिया ? असंखेज्जा खु००, टीका, पृ० २४४, सूत्र १, २ । ५. तिरिक्खगदीए तिरिक्खा दव्वपमाणेण केवडिया ? अनंता
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• खु० बं० सू० १४, १५ ।
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