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[ परिमाणाणुगम-परूवणा] १७४. परिमाणाणुगमेण दुविहो णिदेसो ओघेण आदेसेण य । तत्थ ओघेणपंचणाणावरण-णवदंसणावरण-मिच्छत्त-सोलसकसाय-भय-दुर्गच्छा-तेजाकम्मइग-वण्ण०४ अगु०४ आदा-उज्जोव-णिमिण-पंचंतराइगाणं बंधगा अबंधगा केवडिया ? अणंता । सादबंधगाबंधगा केव० ? अणंता। असादबंधा(धगा) अबंधगा केव० ? अणंता । दोण्णं वेदणीयाणं बंधा(धगा) अबंधगा अणंता । एवं सत्तणोक० पंचजादि-छसंठाणं छस्संघ दोविहाय० तसथावरादि-दसयुगलं दोगोदं च । तिण्णि-आयु-वेउब्धियछक्कतित्थयरं बंधगा केव० ? असंखेजा । अबंधगा केत्तिया ? अणंता । तिरिक्खायु-दोगदि
[परिमाणानुगम] १७४. परिमाणानुगमका ओघ और आदेशसे दो प्रकार वर्णन करते हैं।
विविध मार्गणाओंमें स्थित जीवोंके किस प्रकृतिके बन्धकोंकी कितनी संख्या है, इस बातका ज्ञान परिमाणानुगम प्ररूपणा-द्वारा होता है । 'खुद्दाबन्धकी धवलाटीकामें वीरसेना. चायने लिखा है-“एदाओ मग्गणाओ सव्वकालमत्थि, एदाओ च सव्वकालं णस्थित्ति णाणाजीवभंगविचयाणुगमेण जाणाविय संपहि मग्गणासु हिदवाणं पमाणपस्वट्ठदव्याणिओगद्दारमागदं (पृ० २४४)" ये मार्गणाएँ सर्वकाल हैं, ये मागेणाएँ सर्वकाल नहीं हैं- इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचयाणुगमसे कह कर अब उन मार्गणाओंमें स्थित जीवोंके प्रमाणके निरूपणार्थ द्रव्यानुयोग-द्वार प्राप्त होता है।
शंका-क्षेत्रानुगम-प्ररूपणाके पूर्व परिमाणानुगम-प्ररूपणाका कथन क्यों किया गया ?
समाधान—“दव्वपमाणे अणवगदे खेत्तादिअणियोगद्दाराणमधिगमोवाओ णस्थित्ति दवाणिओगद्दारस्स पुवणिदेसो कदो।' ( खु० बं०,टीका पृ० २७ ) द्रव्य प्रमाणके जाने बिना क्षेत्रादि अनुयोग द्वारोंके जाननेका उपाय नहीं है। इससे द्रव्यानुयोगद्वारका पहले कथन किया है,क्षेत्रादिका कथन बादमें किया गया है ।
ओघसे-५ ज्ञानावरण, ९ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कपाय, भय, जुगुप्सा, तैजस-कार्मण शरीर, वणे ४, अगुरुलघु ४, आतप, उद्योन, निर्माण तथा ५ अन्तरायोंके बन्धक और अबन्धक कितने हैं ? अनन्त हैं । साता वेदनीयके बन्धक और अबन्धक कितने हैं ? अनन्त हैं । असाताके बन्धक-अबन्धक कितने हैं ? अनन्त हैं। दोनों वेदनीयोंके बन्धकअबन्धक अनन्त हैं । ७ नोकषाय ( भय-जुगुप्साको छोड़कर ), ५ जाति, ६ संस्थान, ६ संहनन, दो विहायोगति, बस स्थावरादिदस युगल और दो गोत्रके बन्धकों-अबन्धकोंका भी इसी प्रकार समझना चाहिए।
नरक-देव-मनुष्यायु, वैक्रियिकषट्क तथा तीर्थंकर प्रकृति के बन्धक कितने हैं ? असं
१. 'ओघेण मिच्छाइट्टो दव्वपमाणेण केवडिया ? अणंता ॥"-पटाखं०,८०० सू० २।
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