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पयडिबंधाहियारो
१९३ भागा । असाद-पडिलोमं भाणिदव्वं । दोणं बंधगाणं णाणावरणीयभंगो। देवगदि०४ तित्थयराणं आहारभंगो । सेसाणि कम्माणि पत्तेगेण साधारणेण य कम्मइगभंगो ।
एवं भागाभागं समनं ।
असाता-साताके बंधकोंका ज्ञानावरणके समान भंग है। देवगति ४, तीर्थंकरका आहारके समान भंग है। शेष प्रकृतियोंका प्रत्येक तथा साधारणसे कार्मण काययोगीके समान भंग है।
इस प्रकार भागाभाग-प्ररूपणा समाप्त हई।
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