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________________ १६० महाबंध 1 अनंतभागो । सव्वसम्पादिट्ठि - खड्ग सम्मादिट्ठि केव० ? अनंतभागो । अबंधगा सव्वजी ० केव० ? अनंतभागो । सव्वसम्मादिट्टि - खइगसम्मादिट्ठि केव० ९ अनंतभागो (गा) | एवं सव्त्रपगदीणं पत्तेगेण साधारणेण वि एस भंगो कादव्त्रो । वेदगसम्मादिट्ठि-धुविगाणं बंधगा सव्वजी० के० १ अनंतभागो । अबंधगा णत्थि । सेसाणं पत्तेगेण - ओधिभंगो । साधारण धुवगाणं भंगो कादव्वो । उवसम ० - ओधिभंगो । गवरि विसेसो जाणिदव्वा । सासणसम्मा०-धुविगाणं बंधगा सव्वजी० के० ? अनंतभागो । अबंधगा णत्थि । तिष्णि आयु० देवगदि०४ पत्तेगेण मुक्काए भंगो । सेसाणं पत्तेगेण अधिभंगो । साधारणेण देवोघं । सम्मामिच्छा० - धुविगाणं बंधगा सव्वजी० के० ? अनंतभागो । अबंधगा त्थि । दोवेदणीयं हस्सादिदोयुगलं थिरादितिष्णियुगलं देवभंगो । मणुसगदिपंचगं देवदि०४ सुकाए मंगो । पत्तेगेण साधारणेण वेदणीयभंगो । मिच्छादिट्ठि मदिभंगो । उच्चगोत्र, ५ अन्तरायके बन्धक सर्वजीवों के कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सर्वसम्यग्दृष्टिक्षायिक सम्यग्दृष्टियोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । अबन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । अबन्धक सर्व सम्यग्दृष्टि क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्त भाग हैं (?) । विशेष – अबन्धक सर्व सम्यग्दृष्टि क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंके 'अनन्त बहुभाग' पाठ उचित प्रतीत होता है । सामान्य तथा प्रत्येकसे सर्व प्रकृतियोंका इसी प्रकार भंग है । वेदकसम्यक्त्वमें - ध्रुव प्रकृतियोंके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्त वें भाग हैं; अबन्धक नहीं हैं। शेष प्रकृतियोंका प्रत्येकसे अवधिज्ञानके समान भंग है । सामान्यसे ध्रुव प्रकृतियोंका भंग जानना चाहिए । विशेषार्थ - सब सम्यक्त्वियोंकी संख्या समस्त जीवोंके अनन्तवें भाग कही गयी है । उपशमसम्यक्त्वीमें'–अवधिज्ञानके समान भंग है । इसमें जो विशेषता है, वह जान लेनी चाहिए | विशेष - जैसे मनुष्यायु तथा देवायुका बन्ध उपशमसम्यक्त्वमें नहीं होता है । तिर्यवायु तथा नरकाका बन्ध तो सम्यक्त्वी मात्रके नहीं होगा, कारण नरकायुकी बन्ध-व्युच्छित्ति मिथ्यात्व में और तिर्यंचायुकी सासादनमें हो जाती है । सासादनसम्यक्त्वमें ध्रुव प्रकृतियोंके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं; अबन्धक नहीं हैं। नरकायुको छोड़कर शेष ३ आयु, देवगति ४ का पृथक रूपसे शुक्ललेश्याके समान भंग है । शेष प्रकृतियोंका प्रत्येकसे अवधिज्ञानवत् भंग है । सामान्य देवोंके ओघवत् है । सम्यक्त्वमिथ्यात्वी में - ध्रुव प्रकृतियोंके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं ; अबन्धक नहीं हैं । दो वेदनीय, हास्य, रति, अरति, शोक, स्थिरादि तीन युगलका देवके समान भंग है । मनुष्यगतिपंचक, देवगति ४ का शुक्ललेश्या के समान भंग है । १. सम्मत्ताणुवादेण सम्माइट्ठी खइयसम्माइट्ठी वेदगसम्माइद्वी उवसमसम्माइट्ठी सासण-सम्माइट्ठी सम्मामिच्छाइट्ठी सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? अणतो भागो । - - वही, ७७-७८, पृ. ५१६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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