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महाबंधे पत्तेगेण साधारणेण वि देवोघं । तिण्णिायु-दोगदि-तिण्णिजादि-वेगुब्धियअंगोवंगदोआणुपुवि० सुहुम-अपजत्त-साधारण. मणजोगीणं णिरयगदिभंगो। तिरिक्खगदिएहंदिय-हुंडसंठाण-तिरिक्खाणुपुब्धि थावर-अथिरादिपंच-णीचागोदाणं च असादभंगो । पंचिंदियजादि-ओरालिय० अंगो० छस्संघ० मणुसगदि० मणुसगदि पाओग्गाणुपु० आदाउजो० दोविहाय दोसर० पत्तगेण साधारणेण वि सादभंगो । ओरालियसरीरस्स बादरभंगो । केण कारणेण देवगदि-बंधगाणं असंखेजदिभागो ? असंखेजवासायुगेर विभंगणाणिवा(रा)सिस्स असंखेजदिभागो विभंगे वट्टदि । तदो असंखेजवासायुगादो देवा असंखेजगुणा त्ति ।
१६६. आभि० सुद० ओधिणा०-पंचणा० छदंस० बारसक० पुरिस० भयदु० पंचिंदि० तेजाक० समचदु० बजरिस० वण्ण०४ अगु०४ पसत्थवि० तस०४ सुभगसुस्सर-आदेज-णिमिण-उच्चागोद पंचंतराइगाणं बंधगा सव्वजी० केव० ? अणंतभागो। सव्वबंधगा आभि० सुद०-ओधि० केव० ? असंखेजा भागा। अबंधगा सव्वजी० केव० ? अणंतभागो। सव्वआभिणि-सुद०-ओधिणा० केव० ? असंखेजदिभागो। दोवेदणीयं हस्सरदि-दोयुगलं थिरादि तिण्णियुगलं मणजोगिभंगो। दोआयु गदिचदुकं?
विशेष - यहाँ तीन वेदनीयके स्थानमें 'तीन वेद' पाठ संगत प्रतीत होता है।
। ३ आयु, २ गति, तीन जाति, वैक्रियिक अंगोपांग, दो आनुपूर्वी, सूक्ष्म, अपर्याप्तक, • साधारणका मनोयोगियोंके नरकगतिके समान भंग है। तियंचगति, एकेन्द्रिय जाति, हुंडकसंस्थान, तिर्यंचानुपूर्वी, स्थावर, अस्थिरादि पंचक तथा नीच गोत्रका असाताके समान भंग है। पंचेन्द्रिय जाति, औदारिक अंगोपांग, ६ संहनन, मनुष्यगति, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, आतप, उद्योत, दो विहायोगति तथा दो स्वरका प्रत्येक तथा सामान्यसे भी साताके समान भंग है। औदारिक शरीरका बादरभंग है।
शंका - औदारिक शरीरका बादर भंग किस कारणसे देवगतिके बन्धकोंके असंख्यातवें भाग है ?
समाधान - असंख्यात वर्षकी आयुवालोंमें विभंगज्ञानियोंकी राशिका असंख्यातवाँ भाग विभंग ज्ञानमें रहता है, इस कारण असंख्यात वर्षको आयुवालोंसे देव असंख्यातगुणे हैं।
१६९ आभिनिबोधिक - श्रुत - अवधिज्ञानमें - ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, १२ कषाय, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, पंचेन्द्रिय जाति, तैजस-कार्मण शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वनवृषभसंहनन, वर्ण ४, अगुरुलघु ४, प्रशस्त विहायोगति, त्रस ४, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, उच्चगोत्र तथा ५ अन्तरायके बन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । सम्पूर्ण आभिनिबोधिक-श्रुत-अवधिज्ञानियों के कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं। अबन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सम्पूर्ण आभिनिबोधिक-श्रुतअवधिज्ञानियोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं। दो वेदनीय हास्य-रति, अरति-शोक, स्थिरादि तीन युगलोंका मनोयोगियोंके समान भंग है। दो आयु, ४ गति,
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