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पडबंधाहियारो
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आहारदुगं तित्थयरं विभंगणाणं च देवगदिभंगो । मणुसगदि-पंचगं धुविगाणं भंगों । पत्तेगेण साधारणेण त्रिगदिधुविगाणं भंगो । एवं दोसरीर दोअंगो० दोआणु० । एवं ओधिदं० । मणपत्र ०- मणुसिभंगो। णवरि वेदणीयस्स अबंधगा णत्थि । एवं संजदेवि । वेदणीयस्स अबंधगा अत्थि । सामाइ० छेदो०- पंचणा० चदुदंस० लोभसंजलण - उच्चा गोद - पंचंतराइगाणं केवडिओ भागो ? अनंतभागों । अबंधगा णत्थि । से मणपजभंगो। परिहार० - आहारका जोगिभंगो । सुहुमसंप० - पंचणा० चदुदं० साद० जस० उच्चागो० पंचत० बंधगा सव्वजी० के० ? अनंतभागो । अबंधगा णत्थि । यथाक्खाद ० - सादेबंधगा सव्वजी० के० ? अनंतभागो । सव्वयथाक्खाद० केव ? संखेज्जा भागा । अबंधगा सव्वजी० के० ? अनंतभागो । सव्वयथाक्खाद० केव० ?
आहारकद्विक, तीर्थंकरके विभंगज्ञानियों में देवगति के समान भंग हैं। मनुष्यगति ५ के ध्रुव प्रकृतियोंके समान भंग है । प्रत्येक तथा साधारण से गतिका धुत्र प्रकृतियोंके समान भंग है ! दो शरीर, दो अंगोपांग, दो आनुपूर्वीका भी इसी प्रकार जानना चाहिए । अवधिदर्शन में उपरोक्त ज्ञानत्रयके समान है ।
मन:पर्ययज्ञान में - मनुष्यनियोंके समान भंग है । विशेष, यहाँ वेदनीयके अबन्धक नहीं हैं। संयतोंमें इसी प्रकार है । विशेष, यहाँ भी वेदनीयके अबन्धक भी हैं ।
सामायिक-छेदोपस्थापना संयम में - ५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, लोभ-संज्वलन, उच्चगोत्र तथा ५ अन्तरायके बन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । अन्धक नहीं हैं। शेष प्रकृतियोंका मन:पर्ययज्ञानके समान भंग हैं ।
परिहारविशुद्धिसंयम में - आहारककाययोगीके समान भंग हैं ।
सूक्ष्म-साम्पराय-संयममें - ५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, सातावेदनीय, यशः कीर्ति, उच्चगोत्र, ५ अन्तरायके बन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । अबन्धक नहीं हैं।
यथाख्यात संयममें - साता वेदनीयके बन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । सर्व यथाख्यात् संयमियोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं । अबन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । सर्व यथाख्यात संयमियोंके कितने भाग हैं? संख्यात बहुभाग हैं ( ? )
विशेष - यहाँ सर्व यथाख्यात संयमियों में अबन्धकों की गणना संख्यातवें भाग सम्यकू प्रतीत होती है ।
१. दंसणाणुवादेण चक्खुदंसणी - ओहिदंसणी केवलदंसणी सम्वजीवार्ण केवडिओ भागो ? अनंतभागो । अचक्खुदंसणी सम्वजीवाणं केवडिओ भागो ? अनंता भागा ।। - ६३-६६ खु०ब०सू० । २. संजमाणुवादेण संजदा सामाइय-छेदोवट्टावणसुद्धिसंजदा परिहारसुद्धिसंजदा सुहुमसांपरायइयसुद्धिसंजदा जहाक्खादविहारसुद्धिसंजदा संजदासंजदा सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? अनंतभागो । असंजदा सव्वarvihar भागो ? अनंता भागा ।। - ५९-६२ ० बं०, सू५, पृ. ५१२-१३ ।
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