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________________ पयडिबंधाहियारो १८३ (जाभागा ) । असादबंधगा सव्वजी. केव० ? संखेजदिभागो। सबलोभे केव. ? संखेजा भागा। अबंधगा सव्वजी० केव० ? संखेजदिभागो। सव्वलोमे केव० ? संखेजदिभागो । एवं जस० अजस० दोगोदं च। तिण्णिवे० [हस्सादि] दोयुगल. चदुआयु० चदुगदि-पंचजादि-सयसरीर-छस्संठा तिण्णिअंगो० छस्संघ० चदुआणु० परघादुस्सा० आदाउजो० दोविहाय तसथावरादिणवयुगलाणं कोधभंगो । णवरि यं हि चदुभागे देसूणे तं हि चदुभागो सादिरेयो कादव्वो। एवं णाणत्तं कोधाद्० । अकसाईकेवलि(ल)णा० केवलदंसणा० सादावे. अवगदवेदभंगो। १६७. मदि० सुद०-धुविगाणं मिच्छत्तं वज एइंदियभंगो । मिच्छत्त' सेसाणं च तिरिक्खोघं। १६८. विभंगे-धुविगाणं बंधगा सबजी० केव.? अणंतभागो। अबंधगा णत्थि । मिच्छत्त-परघादुस्सास-बादरपज्जत्त-पत्तयाणं बंधगा सव्वजी० केव० १ अणंतभागो । सबविभंगा केव०? असंखेज्जा भागा। अबंधगा सव्वजी० केव०? अणंतभागो। सव्यविभंगे केव० ? असंखेजदिभागो। दोवेदणीय-तिण्णिवेदणीय (वेद) सव्ययुगलाणं असाताके बन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं। सर्वलोभियोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं। अबन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं । सर्वलोभियोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं। यशःकीर्ति, अयश-कीर्ति तथा दो गोत्रोंमें इसी प्रकार भंग हैं। तीन वेद, हास्य, रति, अरति, शोक, चार आयु, चार गति, ५ जाति, सर्व शरीर, ६ संस्थान, तीन अंगोपांग, ६ संहनन, ४ आनुपूर्वी, परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, स-स्थावरादि । युगलका क्रोधके समान भंग जानना चाहिए । विशेष, जहाँ पर देशोन चार भाग हो, वहाँ इसमें साधिक चार भाग कर लेना चाहिए । यही क्रोधसे यहाँ विशेषता है। अकषायो, केवलज्ञानी, केवलदर्शनीमें साता वेदनीयका अपगतवेदके समान भंग है । १६७. मत्यज्ञान, श्रुताज्ञानमें-मिथ्यात्वको छोड़कर शेषध्रुव प्रकृतियोंका एकेन्द्रियके समान भंग हैं । मिथ्यात्व तथा शेष प्रकृतियोंका तियचोंके ओघवत् भंग हैं। १६८. विभंगज्ञानमें ध्रुव प्रकृतियों के बन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं ; अबन्धक नहीं हैं। मिथ्यात्व, परघात, उच्छ्वास, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकके बन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सर्वविभंग ज्ञानियोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं। अबन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । सर्व विभंगज्ञानियोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं। दो वेदनीय, तीन वेदनीय ( वेद) तथा सम्पूर्ण युगल प्रकृतियों के प्रत्येक तथा सामान्यसे देवगतिके ओघवत् जानना चाहिए । १. अकसाई सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? अणंतो भागो ॥ ५३,४४ - खु० बं० । २. णाणाणुवादेण मदिअण्णाणी-सुदअण्णाणी सव्वजीवाणं केवडिओभागो? अणंता भागा ।। ५५ बं०। ३. विभंगणाणो-आभिणिबोहियणाणी-सुदणाणी-ओहिणाणी-मणपज्जवणाणी केवलणाणी मधजीवाणं केवडिओ भागो अणंतभागो ॥ सू०५७,५८ खु० बं० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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