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________________ १७८ महाबंधे आहारमि० सव्वट्ठभंगो । णवरि असंजदपगदीओ णस्थि । १६२. कम्मइ०-धुविगाणं बंधगा सबजी. केव० ? असंखेजदिभागो । सव्वकम्मइ० केव० १ अणंतभागा । अबंधगा सबजी० केव० ? अणंतभागी । सव्वकम्मइ० केव० ? अणंतभागो। सादबंधगा सव्वजी० केव० ? असंखेजदिभागो । सव्यकम्मइ० केव० ? संखेजदिभागो । अबंधगा सव्वजी० केव० ? असंखेजदिभागो । सव्वकम्मइ० केव० ? संखेजदिभागो ( संखेन्जा भागा)। असादं पडिलोमेण भाणिदव्वं । दोण्णं वेदणीयाणं बंधगा सव्वजी० केव० ? असंखेजा भागो ( असंखेजदिभागो ) । अबंधगा णत्थि । इत्थि. पुरिस० सादभंगो पत्तेगेण । णबुंस० असादभंगो। साधारणेण धुविगाणं भंगो। .देवगदि०४ तित्थय० बंधगा सव्वजी० केव० ? अणंतभागो। सवकम्मइ० केव० ? अणंतभागो। अबंधगा सव्वजी० केव० ? असंखेजदिभागो । सव्वकम्मइ० केव० ? अणंतभागा । साधारणेण धुविगाणं भंगो कादव्यो । ओरालिय वैक्रियिक-वैक्रियिकमिश्रकाययोगमें-देवोंके ओघवत् है। आहारक, आहारकमिश्रकाययोगमें-सर्वार्थसिद्धिके समान भंग जानना चाहिए । विशेष, यहाँ असंयत अवस्थावाली प्रकृतियाँ नहीं हैं। १६२. कार्मण काययोगियों में-ध्रुव प्रकृतियोंके बन्धक सन जीवों के कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं।' सम्पूर्ण कार्मण काययोगियोंके कितने भाग हैं ? अनन्त बहुभाग हैं। अबन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवे भाग हैं। सो कार्माण काययोगियोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । साता वेदनीयके बन्धक सौजीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवे भाग हैं । सर्वा' कार्मण काययोगियोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं । अबन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं । सर्वाकार्माण काययोगियोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं (?) ___विशेष-यहाँ अबन्धक सर्व कार्मण काययोगियोंकी संख्या 'संख्यात बहुभाग' उचित प्रतीत होती है। असाता वेदनीयका सातासे विपरीत क्रम जानना चाहिए। दोनों वेदनीयोंके बन्धक सौजीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं । अबन्धक नहीं हैं। विशेष-यहाँ कार्मण काययोगमें दोनों वेदनीयके बन्धक सम्पूर्ण जीवोंके 'असंख्यातवें 'भाग' उपयुक्त प्रतीत होते हैं । क्योंकि इस योगवालोंकी संख्या सर्वाजीव राशिकी असंख्यातवें भाग कही गयी है। स्त्रीवेद, पुरुषवेदमें प्रत्येकसे साताके समान भंग है। नपुंसकवेदमें असाताका भंग है। सामान्यसे वेदोंका ध्रुव प्रकृतियोंके समान भंग जानना चाहिए। देवगति ४, तीर्थकरके बन्धक सजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सर्व कार्मण काययोगियोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । अबन्धक सर्वजीवों के कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं। सर्ग कार्मण काययोगियोंके कितने भाग हैं ? अनन्त बहुभाग हैं । सामान्यसे ध्रुव प्रकृतियोंके १. कम्मइयकायजोगी सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? असंखेज्जदिभागो। -खु० बं०भा० ४३,४४। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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