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पय डिबंधाहियारो
१७७ सरीरं० केव० ? अणंतभागा। अबंधगा सबजी० केव० ? अणंतभागो। सव्व० ओरालि. केव० ? अणंतभागो । एवं सव्वाणं पत्तेगेण तिरिक्खोघं भाणिदण साधारणेण वेदभंगो कादव्यो।
१६१. ओरालियमिस्सं-धुविगाणं बंधगा सव्वजी० केव० ? संखेजदिमागो । सव्वओरालियमिस्स केव० ? अणंतभागा। अबंधगा सबजी. केव० ? अणंतभागो। सव्वओरालिमिस्स केव० ? अणंतभागा ( अणंतभागो) । वेदणीयं पचेगेण साधारणेण वि सुहम-अपज्जत्तभंगो। इत्थि. पुरिस० पत्तेगेण सादभंगो। णवंस० असादभंगो । साधारणेण धुविगाणं भंगो कादव्यो । देवगदि०४ तित्थयरं बंधगा सव्वजी० केव० ? अणंतभागो। सव ओरालियमिस्साणं केव० ? अणंतभागो । अबंधा सव्वजी० केव० ? संखेजदिभागो। सव्वओरालियमिस्साणं केव० ? अणंतभागो ( गा ) । एवं पत्तेगेण साधारणेण वि वेदभंगो । दोआयुछस्संघ-दोविहा० पत्तेगेण साधारणेण वि सादभंगो । णवरि मणुसायु सुहुम-अपज्जत्तभंगो। वेउवि० वेउब्बियमि० देवोघं । आहार०
औदारिक काययोगियों के कितने भाग हैं ? अनन्त बहुभाग हैं । अबन्धक सर्वाजीवोंके कितने भाग हैं । अनन्त- भाग हैं। सन औदारिक काययोगियोंके कितने भाग हैं ? अनन्तों भाग हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण प्रकृतियों का प्रत्येकसे तिय चोंके ओघवत् कहकर वेदके समान सामान्यसे भंग करना चाहिए।
१६१. औदारिकमिश्र काययोगियोंमें-ध्रुव प्रकृतियोंके बन्धक सजीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यातों भाग हैं (?) सर्मा औदारिकमिश्र काययोगियोंके कितने भाग हैं ? अनन्त बहुभाग हैं। अबन्धक सनजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्त- भाग हैं। सर्मा औदारिकमिश्र काययोगियोंके कितने भाग हैं ? अनन्त बहुभाग (?) हैं।
विशेष-यहाँ 'अनन्तों भाग' पाठ प्रतीत होता है।
प्रत्येक तथा सामान्यसे वेदनीयका सूक्ष्म-अपर्याप्तकोंके समान भंग है । स्त्रीवेद, पुरुषवेदका प्रत्येकसे साताके समान भंग है। नपुंसकवेदका असाताके समान भंग है। सामान्यसे वेदोंका ध्रव प्रकृतियों के समान भंग है। देवगति ४ तथा तीर्थकरके बन्धक साजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्त- भाग हैं। सन औदारिकमिश्र काययोगियोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । अबन्धक सौजीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यातन भाग हैं। सम्पूर्ण . औदारिकमिश्र काययोगियोंके कितने भाग हैं ? अनन्तभाग हैं (?)।
विशेष-यहाँ 'अनन्तबहुभाग' पाठ उपयुक्त प्रतीत होता है । कारण देवगति ४, तीर्थकरके अवन्धक जीव बन्धकोंकी अपेक्षा अधिक होंगे । इनके बन्धक जीव जब कि औदारिकमिश्र काययोगियों के अनन्तठों भाग हैं, तब अबन्धकोंको गणना इनसे अधिक अवश्य होनी चाहिए।
इस प्रकार प्रत्येक तथा सामान्यसे वेदोंके समान भंग जानना चाहिए । दो आयु, ६ संहनन, दो विहायोगतिका प्रत्येक तथा साधारणसे भी सातावेदनीयके समान भंग है। विशेप, मनुष्यायुका सूक्ष्म अपर्याप्तकों के समान भंग है।
१. ओरालियमिस्सकाययोगी सव्वजीवाणं केवडिओ भागो? संखेज दिभागो ।। -४१, ४२ खु० बं० ।
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