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महाबंधे वेगुन्धि० अंगो० छस्संघ. दोआणु० आदाउजो० दोविहाय-तस-थिरादिछक-दुस्सरउच्चागोदं च । बादरपजत्तपत्तेयसरीरं बंधगा सव्व० केव० ? अणंतभागो। सव्व-पंचमणतिण्णिवचि० केव० १ असंखेजा भागा । अबंधगा सव्व० केव० ? अणंतभागो । सबपंचमण-तिण्णिवचि० केव० ? असंखेजदिभागो । साधारणेण पंचजादि-दोसरीर-छसंठा० चदुआणु० तस-थावरादि-णवयुगल-दोगोदाणं च गदीणं भंगो। दोअंगो० छसंघदोविहाय दोसर० साधारणेण सादभंगो।
१६०. वचिजोगि-असञ्चमोसवचिजोगीणं तसपजत्तभंगो। णवरि साधारणेण वि वेदणीयभंगो । अबंधगा णत्थि । कायजोगि ओघं। किंचि विसेसो । वेदणीयाणं बंधगा सव्वजी० केव० ? अणंतभागो (गा) । अबंधगा णस्थि । ओरालियकायजोगिधुविगाणं बंधगा सव्वजी० के० ? संखेजा भागा । सव्वजी० ओरालि. ? अणंतभागा। अबंधगा सव्वजी० केव० ? अणंतभागो। सबजी० ओरालि० केव० ? अणंतभागो । वेदणीयं एइंदियभंगो। इथि० पुरिस० पत्तेगेण सादभंगो। णबुंस० असादभंभो । तिणि वेदाणं बंधगा सव्वजी० केव० ? संखेजदि(जा)भागा । सबजी० ओरालि जाति, वैक्रियिक शरीर, ५ संस्थान, औदारिक अंगोपांग, वैक्रियिक अंगोपांग, ६ संहनन, २ आनुपूर्वी, आतप, उद्योत, २ विहायोगति, त्रस, स्थिरादिपटक, दुस्वर तथा उच्चगोत्रका देवगतिके समान भंग है । बादर, पर्याप्त, प्रत्येक शरीरके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । सर्व पंच मनोयोगी और ३ वचनयोगियोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं। अबन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सर्व पंचमनोयोगी, तीन वचनयोगियोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं। सामान्यसे ५ जाति, २ शरीर, ६ संस्थान, ४ आनुपूर्वी, त्रस-स्थावरादि ६ युगल, और दो गोत्रोंका गति के समान भंग है। दो अंगोपांग, ६ संहनन, २ विहायोगति, २ स्वरका सामान्यसे साताके समान भंग है।
१६०. वचनयोगियोंमें - असत्यमृपावचनयोगियोंमें - त्रस पर्याप्तकों के समान भंग है । विशेष, साधारणसे भी वेदनीयके समान भंग हैं , अवन्धक नहीं हैं। काययोगियोंमें -
ओघवत् जानना चाहिए। कुछ विशेषता है । वेदनीयोंके बन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं ; अबन्धक नहीं हैं।
विशेषार्थ-'अनन्त बहुभाग' पाठ उचित प्रतीत होता है क्योंकि कामयोगी सर्वजीवोंके अनन्त बहुभाग कहे गये हैं।
___औदारिक काययोगियोंमें ध्रुव प्रकृतियोंके बन्धक सर्व जीवों के कितने भाग हैं) संख्यात बहुभाग हैं। सर्व औदारिक काययोगियोंके कितने भाग हैं। अनन्त बहुभाग हैं। अबन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सर्व औदारिक काययोगियों के कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। वेदनीयका एकेन्द्रिय के समान भंग जानना चाहिए। प्रत्येकसे स्त्रीवेद, पुरुषवेदका साताके समान भंग है। नपुंसकवेदका असाताके समान भंग है। तीनों वेदोंके बन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं । सर्व
१. कायजोगी सब्वजीवाणं केवडिओभागो ? अणंता भागा ।। -खु० बं०, भागाभा०,३०,३८ । २. ओरालियकायजोगी सव्वजीवाणं केवडिओ भागो? संखेज्जा भागा । ३९,४०।
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