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________________ पयडिबंधाहियारो १७९ अंगो० छसंघ० दोविहा० दोसर० पचेगेण साधारणेण वि सादभंगो। सेसाणं परियत्तियाणं वेदभंगो। १६३. इथिवेदेसु-पंचणा० चदुदंसणा० चदुसंज. पंचंत० बधगा सव्वजी० केव० ? अणंतभागो । अबंधगा णस्थि । पंचदंस० मिच्छत्त-बारसक० भयदु० तेजाक० वण्ण०४ अगु० उप० णिमि० बंधगा सव्वजी० केव० ? अणंतभागो। सव्व-इत्थिवेद० केव० ? असंखेजदि (जा) भागा। अबंधगा सव्वजी० केव० ? अणंतभागो । सव्वइस्थिवेद. केव० ? असंखेजदिभागो। दोवेदणी० तिण्णिवेद-जस-अजस० दोगोदाणं पत्तेगेण साधारणेण वि पंचिंदिय-तिरिक्खिणीभंगो । आयुगाणं जोणिणीभंगो। हस्सरदितिणिगदि-चदुजादि-वेगुम्विय० पंचसंठा० दोअंगो० छसंघ० तिण्णि-आणु० आदाउजो० दोविहा. तस-सुहुम-अपजत्त-साधारण-थिरादि-पंच-दुस्सर-उच्चागोदं च पत्तेगेण सादभंगो । अरदि-सोग-तिरिक्खगदि-एइंदिय-ओरालिय-हुंडसंठा०-तिरिक्खाणु० परघादुस्सा० थावर वादर-पज्जत्त-पत्तेय-सरीर-अथिरादि०४ णीचागोदं च असादभंगो । एवं पत्तेगेण साधारणेण पंचिंदियभंगो । आहारदुगं तित्थयरं च पंचिंदियभंगो । तिण्णिअंगो० छसंघ० दोविहा० सुस्सर-दुस्सर-साधारणेण सादभंगो । एवं पुरिसवेदस्स वि। भंग है । औदारिक अंगोपांग, छह संहनन, दो विहायोगति, दो स्वरके बन्धकोंका प्रत्येक तथा सामान्यसे साता वेदनीयके समान भंग जानना चाहिए । शेष परिवर्तमान प्रकृतियोंका वेदके समान भंग है। १६३. स्त्रीवेद में-५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, ५ अंतरायके बन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं'; अबन्धक नहीं हैं। ५ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १२ कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजस-कार्मण. शरीर, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माणके बन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं? अनन्तवें भाग हैं ? सर्वस्वीवेदियोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं । अबन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सर्वस्त्रीवेदियोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं । दो वेदनीय, ३ वेद, यशःकीर्ति, अयशःकीर्ति तथा २ गोत्रके प्रत्येक तथा सामान्यसे पंचेन्द्रिय तियचिनीके समान भंग है। आयुओंमें योनिमतीके समान भंग है । हास्य, रति, तीन गति, चार जाति, वैक्रियिक शरीर, ५ संस्थान, दो अंगोपांग, ६ संहनन, तीन आनुपूर्वी, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, त्रस, सूक्ष्म, अपर्याप्तक, साधारण, स्थिरादि पाँच, दुस्वर तथा उच्चगोत्रका प्रत्येकसे साताके समान भंग है। अरंति, शोक, तिर्यंचगति, एकेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, हुंडक संस्थान, तिय चानुपूर्वी, परघात उच्छ्वास, स्थावर, बादर, पर्याप्तक, प्रत्येक, शरीर, अस्थिरादि ४ तथा नीच गोत्रके बन्धकके असाता वेदनीयके समान भंग है। प्रत्येक तथा सामान्यसे पंचेन्द्रियके. समान भंग है। आहारकद्विक तथा तीर्थकरका पंचेन्द्रियके समान भंग है। तीन अंगोपांग, ६ संहनन, दो विहायोगति, सुस्वर, दुस्वरका सामान्यसे साताके समान भंग है। पुरुषवेदमें-स्त्रीवेदके समान भंग है । १. वेदाणुवादेण इत्थिवेदा पुरिसवेदा अवगदवेदा सव्वजीवाणं केवडिओभागो ? अणंतो भागो-।-खु० बं०भा० सू०४५,४६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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