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पयडिबंधाहियारो
१७१ केव० ? असंखेन्जदिभागो । अबंधगा णस्थि । सादभंगो इत्थि० पुरि० हस्सरदि-तिरिक्खायु-मणु सगदि-चदुजादि-पंचसंठा० ओरालि० अंगो० छस्संघ० मणुसाणु० परषादुस्सा० आदावुज्जो० दोविहा० तस०४ थिरादिलकं दुस्सर-उच्चागोदं च। असादभंगो णपुंस० अरदिसोग-तिरिक्रुग०-एइंदियजा-इंडसं०-तिरिक्खाणु० थावरादि०४ अथिरादिपंच-णीचागोदं च । मणुसायु-बंधगा सव्व० केव० ? अणंतभागो । सव्वबादरएइंदिय-पज्जत्ताअपज्जत्ताणं केव० ? अणंतभागो । अबंधगा सव्व० केव० ? असंखेज्जदिभाग्थे। सव्ववादर-एइंदिय-पज्जत्ताअपज्जात्ताणं केव० ? अणंतभागा । दोआयु० छस्संघ० दोविहा० दोसर० साधारणेण सादभंगो। सेसाणं परियत्ताणं युगलाणं वेदणीयभंगो।
१५५. सुहमे०-धुविगाणं बंधगाण-सव्व० केव० ? असंखेज्जा भागा० । अबंधगा णस्थि । सादाबंध० सव्व० केव० १ संखेज्जदिभागो। सव्वसुहुमे-इंदियाणं केव० ? संखेजदिभागो। अबंधगा सव्व० केव० ? संखेज्जा भा० । सव्वसुहुमाणं केव० ? संखेजा भा० । असादं पडिलोमे० भाणिदव्यं । दोवेदणीयाणं बंध० सव्व० केव ? असंखेज्जा भागा। अबंधगा णत्थि । एवं सव्वाओ परियत्तीओ वेदणीयभंगो । छण्णं जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं ; अबन्धक नहीं हैं। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य, रति, तियचायु, मनुष्यगति, ४ जाति, ५ संस्थान, औदारिक अंगोपांग, ६ संहनन, मनुष्यानुपूर्वी, परघात, उच्छवास, आतप, उद्योत, २ विहायोगति, त्रस ४, स्थिरादि ६, दुस्वर, उच्चगोत्रका साताके समान भंग जानना चाहिए। नपुंसकवेद, अरति, शोक, तिर्यंचगति, एकेन्द्रियजाति, हुण्डकसंस्थान, तिथंचानुपूर्वी, स्थावरादि ४, अस्थिरादि ५, नीचगोत्रका असाताके समान भंग है । मनुष्यायुके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । सर्व बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त अपर्याप्तकोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। अबन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं। सर्व बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्त जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्त बहुभाग हैं। दो आयु, छह संहनन, २ विहायोगति, २ स्वरके सामान्यसे साताके समान भंग है ? शेष परिवर्तमान युगलरूप प्रकृतियोंका वेदनीय के समान भंग जानना चाहिए।
१५५. सूक्ष्म-एकेन्द्रियमें-ध्रुव प्रकृतियोंके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं। असंख्यात बहुभाग हैं; अबन्धक नहीं हैं । साता वेदनीयके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं। सर्व सूक्ष्मएकेन्द्रियजीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं। अबन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं। सर्व सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं । असाता वेदनीयका प्रतिलोम क्रमसे भंग है।
__ विशेषार्थ-असाताके बन्धक सर्व जीवोंके संख्यात बहुभाग हैं। सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोंके संख्यात बहुभाग हैं। अबन्धक सर्व जीवोंके संख्यातवें भाग हैं । सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोंके संख्यातवें भाग हैं।
दो वेदनीयके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं । अबन्धक नहीं हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण परिवर्तमान प्रकृतियों में वेदनीयके समान भंग जानना चाहिए ।
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