________________
महाबंधे
भंगो पुरिस० अरदिसोग० चमचद् [ समचदु० ] बजरिसभ० पसत्थ० अथिर-असुभसुभग-सुस्सर-आदेज० अजस० उच्चागोदाणं च । दोण्णं वेदणीयाणं बंधगा सब० केव०? अणंतभागो । अबंधगा पत्थि । एवं सेसं ( साणं) परियत्तमाणयाणं । आयु जोदिसियभंगो । अणुदिस याव सव्वट्ठत्ति अणाद (आणद) भंगो। वरि सव्वट्ठ आयु माणुसिभंगो।
१५४. एइंदिएम-पंचणा० णवदंसणा० मिच्छत्त० सोलसक० भयदु० ओरालि. तेजाक० वण्ण४ अगु० उप० णिमि० पंचंत० बंध० सव्वजी० केव० ? अणंता भागो (भागा) । अबंधगा णत्थि । सेसं तिरिक्खोघं.। बादरएइंदियपज्जत्तापज्जत्तेसु-दुविगाणं बं० सव्व० केव० ? असंखेजदिभामो । अबंधगा णस्थि । सादबंध० सव्व० केव० ? असंखे ज-दिभागो। सव्ववादर-एइंदिय-पञ्जत्तापजत्ताणं केव० ? संखेज्जदिभागो । अबंधगा सव्व० केव० ? असंखेज्जदिभागो। सव्ववादर-एइंदिय-पज्जत्तापज्जत्ताणं केव. ? संखेज्जा भाग । एवं असादं पडिलोमेण भाणिदव्वं । दोण्णं वेदणीयाणं बंध० सव्व०
सुभग', ( शुभ )दुभंग, दुस्वर, अनादेय, यशःकीर्ति, नीच गोत्रका साताके समान भंग है । पुरुषवेद, अरति, शोक, समचतुरस्रसंस्थान, वज्रवृषभसंहनन, प्रशस्त विहायोगति, अस्थिर, अशुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, अयशःकीर्ति तथा उच्चगोत्रका असाताके समान भंग हैं। दोनों वेदनीयक बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। अबन्धक नहीं हैं। इस प्रकार परिवर्तमान शेष प्रकृतियोंमें जानना चाहिए। आयुओंमें ज्योतिषी देवोंका भंग है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त आनतके समान भंग जानना चाहिए। विशेष, सर्वार्थसिद्धिमें आयुका भंग मनुष्यनीके समान हैं। . १५४. एकेन्द्रियों में,-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय-जुगुप्सा, औदारिक-तैजस- कार्मण शरीर, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, ५ अन्तरायके बन्धक सर्व जीवों के कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं (?); अवन्धक नहीं हैं।
विशेष-यहाँ 'अनन्तवें भाग' के स्थानमें 'अनन्त बहुभाग' पाठ अँचता है क्योंकि एकेन्द्रिय सर्व जीवों के अनन्त बहुभाग हैं ।
शेष प्रकृतियोंका तिर्यंचोंके ओघवत् वर्णन जानना चाहिए ।
वादर, एकेन्द्रिय पर्याप्त तथा अपर्याप्तोंमें-ध्रुव प्रकृतियों के [ बन्धक ] सर्व जीवोंके कितने भाग है ? असंख्यातवें भाग हैं ; अबन्धक नहीं हैं। साता वेदनीयके बन्धक सर्वे जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं। सर्व बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्तकों के कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं। अबन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात भाग हैं । सर्व बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त अपर्याप्त जीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं। असाताके विपयमें इसी प्रकार प्रतिलोमक्रमसे जानना चाहिए। दोनों वेदनीयोंके बन्धक सर्व
१ यहाँ 'शुभ' पाट उचित प्रतीत होता है । सुभगको पुनः गणना आगे की गयी है।
२ इंदियाणवादेण एइंदिया सव्वजीवाणं केवडियो भागो ? अणंता भागा। -खु० ब०,भागाभा०, ११, १२, पृ. ४६६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org