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पय डिबंधाहियारो
१६७ आदावुजो० दोविहा० तस०४ थिरादि-छक-दुस्सर-उच्चागोदं० सादभंगो। एइंदियजादिहुंडसंठा० थावरादि०४ अथिरादिपंचगं णीचागोदं च असादभंगो। पंचजादि-बंधगा सव्वजी० केव० १ अणंतभा० । अबंधगा णस्थि । एवं तसथावरादिणवयुगलं दोगोदाणं । छस्संघ० दोविहा० दोसर० साधारणेण वि सादभंगो। एवं मणुस-अपजत्त-सव्यविगलिंदियपंचिंदिय-तस-अपजत्त-सव्यपुढवि-आउ० तेउ. वाउ० बादरवणप्फदिपत्तेयः । णवरि तेउ० वाउ० मणुसगदिचदुक्कं णत्थि ।
१५१. मणुसेसु-पंचिंदिय-तिरिक्खभंगो। णवरि धुविगाण अबंध० अस्थि । दोवेदणीयाणं बंधगा सव्वजीव. केव० ? अणंतभागो। सव्वमणुसाणं केव० ? असंखेजा भागा। अबंधगा सव्व० केव ! अणंतभागो। सव्वमणुयाणं केव० ? असंखेअदिभागो। सादभंगो इथि० पुरिस० हस्सरदि-तिरिक्खायु-मणुसगदिचदुजादि-पंचसंठा० ओरालि. अंगो० छस्संघ मणुसाणु० परघादुस्सा. आदावुजोव० दोविहा० तस०४ थिरादिछ०-दुस्सर उच्वागोदं च । असादभंगो णपुंस० अरदिसोग० तिरिक्खगदि-एइंदि० हुंडसंठा० तिरिक्खाणु० थावरादि०४ अथिरादिपंच णीचागोदं च । तिण्णिवेद-हस्सरदिदोयुग० पंचजादिछस्संठा० तसथावरा
६ संहनन, परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, त्रस ४, स्थिरादि ६, दुस्वर तथा उच्चगोत्रका साताके समान भंग है। एकेन्द्रिय जाति, हुण्डक संस्थान, स्थावरादि ४, अस्थिरादि ५ तथा नीच गोत्रका असाताके समान भंग है। ५ जातिके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं; अबन्धक नहीं हैं। त्रस, स्थावरादि ९ युगल तथा दो गोत्रोंमें इसी प्रकार भंग जानना चाहिए। छह संहनन, दो विहायोगति, २ स्वरका प्रत्येक तथा सामान्य रूपसे साताके समान भंग है ।
मनुष्यलब्ध्यपर्याप्तक, सर्व विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय-त्रस-अपर्याप्तक, सम्पूर्ण पृथ्वी, अप, तेज, वायु, बादर वनस्पति, प्रत्येकमें-इसी प्रकार अर्थात् पंचेन्द्रिय तियच लब्ध्यपर्याप्तकके समान जानना चाहिए । विशेष, तेजकाय, वायुकायमें मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, मनुप्यायु तथा उच्चगोत्र नहीं हैं ।
१५१. मनुष्योंमें-पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंका भंग है । विशेष, यहाँ ध्रुव प्रकृतियोंके अबन्धक भी पाये जाते हैं। दो वेदनीयोंके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सम्पूर्ण मनुष्योंके कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं । अबन्धक सर्वा जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । सर्व मनुष्योंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं।
स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य, रति, तिथंचायु, मनुष्यगति, ४ जाति, ५ संस्थान, औदारिक अंगोपांग, ६ संहनन, मनुष्यानुपूर्वी, परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, त्रस ४, स्थिरादि-षटक, दुस्वर तथा उच्चगोत्रका साताके समान भंग है । नपुंसकवेद, अरतिशोक, तिर्यंचगति, एकेन्द्रिय जाति, हुण्डकसंस्थान, तिर्यंचानुपूर्वी, स्थावरादि ४, अस्थिरादि ५ वथा नीचगोत्रका असाताके समान भंग है। तीन वेद, हास्यरति, अरतिशोक, पंच जाति,
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