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महाबंधे दिणवयुग०-दोगोदाणं च वेदणीयभंगो । तिण्णिायु-आहारदु० वेउब्धियछक्कं तित्थय० सव्वजी. केव० ? अणंतभागो। मणुसाणं केव० ? असंखेजदिभागो। अबंधगा सव्वजी० केव० ? अणंतभागो। सव्वमणुसाणं केवडि० ? असंखेजा भागा। ओरा. लिस० पत्तेयेण धुविगाणं भंगो। चदुगदि-दोसरी० चदुआणु० वेदणीयभंगो। दोअंगो० छस्संघ० दोविहा० दोसर० साधारणाणं सादभंगो ।
१५२. मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु - एसेव भंगो। णवरि ये असंखेजा भागा ते संखेजा कादया। सादभंगो इथि० पुरिस० हस्सरदि-तिण्णिगदि-चदुजादि-दोसरीरपंचसंठा० दोअंगो० तिण्णिआणु० आदावुजो० पसत्थ० थावरादि०४ थिरादिछक्क उच्चागोदं च । असादभंगो णपुंस० अरदिसोग० णिरयगदि० पंचिंदि० वेगुन्वि० हुंडसं० वेगुधि० अंगो० णिरयाणु० पर० उस्सा० अप्पसत्थ० तस०४ अथिरादिछक्क० णीचागोदं च। सत्तणोक० चदुगदि-पंचजादि तिण्णिसरीर छस्संठा० तिण्णि अंगो० चदुआणु० दोविहा. तसथावरादि-दसयुगलं दोगोदाणं वेदणीयभंगो। चदुआयु० छस्संघ० पत्तेगेण साधारणेण वि सादभंगो।
१५३. देवेसु णिरयोघं । णवरि विसेसो । सादभंगो इत्थि० पुरिस० हस्सरदि
६ संस्थान, बस-स्थावरादि ९ युगल तथा २ गोत्रोंका वेदनीयके समान भंग है । ३ आयु, आहारकद्विक, वैक्रियिकषटक तथा तीर्थकर प्रकृति के बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्त भाग हैं । सर्व मनुष्योंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं ? अबन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सर्व मनुष्यों के कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं।
औदारिक शरीरका प्रत्येकसे ध्रुवप्रकृतिसदृश भंग है। चार गति, २ शरीर, ४ आनुपूर्वोका वेदनीयके समान भंग है । दो अंगोपांग, ६ संहनन, २ विहायोगति, २ स्वरका साधारणसे साताके समान भंग है।
१५२. मनुष्य-पर्याप्तक मनुष्य नियों में मनुष्यके समान भंग है । विशेष, पूर्वमें जो असंख्यात बहुभाग कहे गये हैं, उनके स्थानमें 'संख्यात बहुभाग' कर लेना चाहिए। स्त्रीवेद, पुरुपवेद, हास्य, रति, मनुष्य-तियच-देवगति, ४ जाति, दो शरीर, ५ संस्थान, दो अंगोपांग, नरकानुपूर्वीके बिना शेष तीन आनुपूर्वी, आतप, उद्योत, प्रशस्त विहायोगति, स्थावरादि ४, स्थिरादि ६ तथा उच्चगोत्रका साताके समान भंग है। नपुंसकवेद, अरति-शोक, नरकगति, पंचेन्द्रिय जाति, वैक्रियिक शरीर, हुण्डकसंस्थान, वैक्रियिक अंगोपांग, नरकानुपूर्वी, परघात, उच्छ्वास, अप्रशस्तविहायोगति, त्रस ४, अस्थिरादिषट्क तथा नीच गोत्रका असाताके समान भंग है । ७ नोकषाय, ४ गति, ५ जाति, ३ शरीर, ६ संस्थान, ३ अंगोपांग, ४ आनुपूर्वी, दो विहायोगति, त्रस-स्थावरादि १० युगल और दो गोत्रोंका वेदनीयके समान भंग है। चार आयु, ६ संहननका प्रत्येक तथा सामान्यसे साताके समान भंग है।
१५३. देवगतिमें - नरकगति के ओघवत् जानना चाहिए। विशेष - स्त्रीवेद, पुरुषवेद,
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