________________
महाबंधे
१६६ मणुसायुबंधगा सव्वजी० केव० ? अणंतभागो । सयपंचिंदिय-तिरिक्ख-पजत्तजोणिणीणं केवडि० ? असंखेज्जदिभागो। अबंधगा सबजी० केव० ? अणंतभागो। सयपंचिंदियतिरिक्खपजत्तजोणिणीणं केव० ? असंखेजदि० (2)। तिरिक्खदेवाणं सादभंगो। चदुण्णपि आयुगाणं सादभंगो। णिरयगदि असादभंगो । ति दिण्णं सादभंगो। चदुण्णं गदीणं बंधगा सब० केव० ? अणंतभा० । अबंधगा णस्थि । एवं आणुपुब्बी०। चदुजादि सादभंगो। पंचिंदियजादीणं असादभंगो। पंचण्णं जादीणं बंधगा सव्व० केव० ? अणंतभागो। अबंधगा णस्थि । वेगुब्बिय० वेगुब्बियअंगो० सादभंगो । दोण्णंपि असादभंगो। छस्संघ० आदावुजो० सादभंगो। परघादुस्सा. अप्पसत्थ० तस०४ अथिरादिछक्क-णीचागोदं च असादभंगो। तप्पडिपक्खाणं सादभंगो । दोविहा० दोसर० असादभंगो । तसादिणवयुगलं दोगोदं च वेदणीयभंगो । पंचिंदियतिरिक्खअपजत्तेसु-पंचणा० णवदंसणा० मिच्छत्त० सोलसक० भयदु० तिण्णिसरी० वण्ण०४ अगुरु० उप० णिमि० पंचंत० बंधगा सव्व० केव० ! अणंतभा० । अबंधगा पत्थि । सेसाणं णिरयोघं । णवरि चदुजादि-ओरालि. अंगो० छस्संघ० परघादुस्सा० यहाँ नरकायु-मनुष्यायुके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सम्पूर्ण पंचेन्द्रिय तिर्यच पर्याप्तक-योनिमतियोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं । अबन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सर्व पंचेन्द्रिय पर्याप्त तिथंच पंचेन्द्रिय तियंचयोनिमतियोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं।
विशेष-यहाँ असंख्यात बहुभाग पाठ उपयुक्त प्रतीत होता है ।
तियच-देवायुका साताके समान भंग जानना चाहिए। चारों आयुका साताके समान भंग जानना चाहिए। नरकगतिका असाताके समान भंगहै। शेष तीन गतियोंका साताके समान भंग है। चारों गतियोंके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। अबन्धक नहीं हैं। आनुपूर्वीका इसी प्रकार भंग जानना चाहिए। ४ जातियोंका साताके समान भंग है। पंचेन्द्रिय जातिका असाताके समान भंग है । पाँच जातियों के बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । अबन्धक नहीं हैं। वैक्रियिक शरीर तथा वैक्रियिक अंगोपांगका साताके समान भंग है। दोनोंका सामान्यसे असाताके समान भंग है। ६ संहनन, आतप, उद्योतका सातावत् भंग है। परघात, उच्छ्वास, अप्रशस्त विहायोगति, त्रस ४, अस्थिरादि ६ तथा नीच-गोत्रका असाताके समान भंग है। इनको प्रतिपक्षी प्रकृतियोंका जैसे प्रशस्तविहायोगति, स्थावरादि ४, स्थिरादि ६, उच्चगोत्रका साताके समान भंग है। दो विहायोगति, दो स्वरका असाताके समान भंग है । सादि ९ युगल तथा २ गोत्रका वेदनीयके समान भंग है।
__ पंचेन्द्रिय-तियंच-लब्ध्यपर्याप्तकोंमें-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण,मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय-जुगुप्सा, औदारिक-तैजस-कार्माण शरीर, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, ५ अन्तरायके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं; अबन्धक नहीं हैं। शेष प्रकृतियोंका नारकियोंके ओघवत् जानना चाहिए। विशेष, ४ जाति, औदारिक-अंगोपांग,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org