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________________ पयडिबंधाहियारो १६५ 1 चदुष्णं आयुगा० बं० सव्व० केव० ? अनंतभागो । सच्चपंचिंदियतिरिक्खाणं केत्र० ? संभागो । अबंधगा सव्व० केव० ? अनंतभागो। सव्वपंचिंदिय-तिरिक्खाणं केव० ? संखेजा भागा। णिरयग दिदेवग दिबंध ० सव्व० केव० ? अनंतभागो । सव्वपंचिंदियतिरिक्खाणं केव० ? असंखेजदिभागो । अबंधगा सव्वजी० के० ? अनंतभागो । सव्वपंचिंदिय-तिरिक्खाणं केव० ? असंखेजा भागा। तिरिक्खगदि० असादभंगो । मणुसग दि० सादभंगो । चदुष्णं गदीणं बंधगा सव्व० केवडि० ? अनंतभागो । अबंधगा णत्थि । ओरालियस ० बंधगा सव्वजी ० केवडि० ? अनंतभागो । सन्त्रपंचिंदिय-तिरिक्खाणं केवडि० ? असंखेजा भागा। अबंधगा सव्वजीव० केव० ? अनंतभागो | सव्वपंचिंदियतिरिक्खाणं केवडि० ? असंखेजदिभागो । वेगुव्वियस० देवदिभंगो | दोणं सरीराणं बंधगा सव्व० के० ? अनंतभागा ( गो ) । अबंधगा णत्थि । ओरालियअंगो० सादभंगो । वेगुव्वियअंगो० देवगदिभंगो । दोष्णं अंगो० सादभंगो । छस्संघ० दोविहाय दोसर० पत्तेगेण साधारणेण सादभंगो । 1 १५०. एवं पंचिदिय-तिरिक्ख-पञ्जत-पंचिदियतिरिक्खजोणिणीसु । णवरि णिरय चार आयुके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं। अनन्तवें भाग हैं । सर्व पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं। अबन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवे भाग हैं । सर्व पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं । नरकगति, देवगतिके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । सर्व पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं । अबन्धक सर्व जीवों के कितने भाग हैं ? अनन्तवों भाग हैं । सर्व पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं । तिर्यंचगतिका असाताके समान भंग है । मनुष्य गतिका साताके समान भंग है। चार गतियोंके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्त वें भाग हैं; अबन्धक नहीं हैं । औदारिक शरीरके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं | सर्व पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं। अबन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवे भाग हैं । सर्व पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं । वैक्रियिक शरीरका देवगतिके समान भंग है । औदारिक-वैक्रियिक शरीरोंके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्त बहुभाग हैं ( ? ) अबन्धक विशेष – यहाँ बन्धक सर्व जीवोंके अनन्तवें भाग होना उचित जँचता है । पंचेन्द्रिय तिर्यच राशि ही जब सम्पूर्ण जीव राशिके अनन्त बहुभाग प्रमाण नहीं है, तब शरीरद्वयके बन्धक अनन्त बहुभाग कैसे होंगे ? अतः अनन्तवें भाग पाठ उचित प्रतीत होता है । औदारिक- शरीर अंगोपांगके विषय में साता के समान भंग है । वैक्रियिक अंगोपांगका देवगति के समान भंग हैं । औदारिक-वैक्रियिक अंगोपांगों का साताके समान भंग है। छह संहनन, २ विहायोगति तथा स्वरयुगलका प्रत्येक तथा सामान्य रूप से साता के समान भंग है। १५०. पंचेन्द्रिय-तिर्यंच-पर्याप्तक, पंचेन्द्रिय-तिर्यंच-योनिमतियों में, इसी प्रकार है। विशेष, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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