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________________ पयडिबंधाहियारो १६१ णेरडगाणं केव० ? संखेज्जा भागा। अबंधगा सव्वजी० केवडि० ? अणंतभागो। सत्रणेरडगाणं केवडि० ? संखेज्जदिभागो । दोण्णं वेदणीयाणं बंध० केव० ? अणंतभा०। अबंधगा णस्थि । सादभंगो इत्थि० पुरिस० हस्स-रदि-मणुसगदि-पंचसंठा० पंचसंघ० मणुसाणु० उज्जोव० पसत्थ० थिरादिछक्कं उच्चागोदं च । असादभंगो णपुंस० अरदिसोग० तिरिक्खग० हुंडसं. असंपत्तसेव० तिरिक्खाणु० अप्पस० अथिरादिछक्कं णीचागोदं च । सत्तणोक० दोगदि० छस्संठा० छस्संघ० दोआणु० दोविहा० थिरादिलकयुगलं दोगो० बंध० सव्व० के० ? अणंतभागो। अबंधगा णत्थि । थीणगिद्धि०३ मिच्छत्त० अणंताणुबं०४ बंधगा सव्व० केव० १ अणंतभागो । सव्वणेरइगा० केव० ? असंखेजा भागा । अबंध० सवजी० केव० ? अणंतभागो। सव्वणेरइगा० केवडि० ? असंखेजदिभा० । तिरिक्खायुबंधगा सव्वजीवाणं केवडियो भागो ? अणंतभा० । सव्वणेरइ० केव० १ संखेजदिभा० । अबंध० सव्व० केव० १ अणंतभा० । सव्वणेरइगाणं केवडिओ० ? संखेजा भागा । मणुसायु-तित्थय० बंध० सव्व० केवडि० ? अणंतभा० । सव्वणेरइगा० केव० ? असंखेजदिभागो । अबंध. सव्व० केव० ? अणंतभा० । सव्व असाताके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सर्वनारकियों के कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभोग है। अबन्धक सर्व जीवों के कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सर्वनारकियोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं। विशेषार्थ-असाताके बन्धक भी सर्व जीवोंके अनन्तवें भाग हैं तथा अबन्धक भी अनन्तवें भाग हैं। इसका कारण नारकी जीवोंकी संख्या है, वह इतनी है कि बन्धक भी बृहत् जीवराशिके अनन्तवें भाग होते हैं तथा अबन्धक भी इतने ही होते हैं। दोनों वेदनीयोंके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। अबन्धक नहीं हैं। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य, रति, मनुष्यगति, ५ संस्थान, ५ संहनन, मनुष्यानुपूर्वी, उद्योत, प्रशस्त विहायोगति, स्थिरादि षट्क तथा उच्चगोत्र में साताके समान भंग जानना चाहिए । नपुंसकवेद, अरति, शोक, तियचगति, हुण्डकसंस्थान, असम्प्राप्तामृपाटिका संहनन, तियचानुपूर्वी, अप्रशस्त विहायोगति, अस्थिरादि षट्क, तथा नीचगोत्रका असाताके समान भंग जानना चाहिए। सात नोकषाय, दो गति, ६ संस्थान, ६ संहनन, दो आनुपूर्वी, दो विहायोगति, स्थिरादि छह युगल तथा दो गोत्रोंके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं अबन्धक नहीं हैं। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी ४ के बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सर्वनारकियोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं। अबन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सर्वनारकियोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं। तिर्यंचायुके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सर्व नारकियोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं। अबन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सर्व नारकियोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं। मनुष्यायु, तीर्थकर प्रकृति के बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सर्व नारकियोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं। अबन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। Jain Education internation? . " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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