________________
महाबंधे १४५. सुहुमसं० पंचणा० चदुदंस० साद० जस० उच्चागो० पंचंत० सिया बंधगो । सिया बंधगा य । अबंधगा णस्थि । यथाक्खादे-सादं सिया सव्वे बंधगा। सिया बंधगा य अबंधगो य । सिया बंधगा य अबंधगा य। तेउ० सोधम्मभंगो। पम्म० सणकुमारभंगो। णवरि किंचि विसेसो णादव्यो। सम्मादि० खहगसं० अप्पप्पणो पगदीओ ओघेण सावे(धे)दव्या । वेदगस० परिहारभंगो । णवरि असंजदसंजदासंजद-पगदीओ णादयो। उवसमस्स-पंचणा० छदंसणा० बारसक० पुरिस० भयदु० पंचिदि० तेजाक० समचदु० वज्जरिस० वण्ण०४ अगु०४ पसस्थवि० तस०४ सुभग-सुस्सर-आदेज-णिमिणं तित्थय० उच्चा०-पंचंत०-अट्ठभंगो । सादासादादीणं परियत्तीणं सवाणं पत्तेगेण साधारणेण वि अट्ठभंगो। णवरि वेदणीयाणं साधारणेण सिया बंधगो य । सिया बंधगा। अबंधगा णत्थि ।
१४५. सूक्ष्मसाम्परायमें-५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, सातावेदनीय, यश कीर्ति, उच्चगोत्र, ५ अन्तरायोंका स्यात् एक जीव बन्धक है । स्यात् अनेक जीव बन्धक हैं । अबन्धक नहीं हैं। यथाख्यात में-सातावेदनीयके स्यात् सर्व बन्धक हैं। स्यात् अनेक बन्धक तथा एक अबन्धक हैं । स्यात् अनेक बन्धक हैं और स्यात् अनेक अबन्धक हैं। तेजोलेश्यामें-सौधर्म स्वर्गके समान भंग जानना चाहिए। पद्मलेश्यामें-सनत्कुमारबत् भंग जानना चाहिए । इनका किंचित् विशेष भी जान लेना चाहिए।
विशेष-इस लेश्यामें एकेन्द्रिय, आताप, तथा स्थावरका बन्धनहीं होता।
सम्यकदृष्टि, क्षायिकसम्यकदृष्टिमें-अपनी-अपनी प्रकृतियोंको ओघके समान जानना चाहिए।
वेदकसम्यक्त्वमें-परिहारविशुद्धिके समान भंग जानना चाहिए। विशेष यह है कि यहाँ असंयत और संयतासंयतकी प्रकृतियोंको भी जानना चाहिए।
___ उपशम सम्यक्त्वमें-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, १२ कषाय, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, पंचेन्द्रियजाति, तैजस, कार्माण, समचतुरस्रसंस्थान, वनवृषभसंहनन, वर्ण ४, अगुरुलघु ४, प्रशस्त विहायोगति, त्रस ४, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थकर, उच्चगोत्र, और ५ अन्तरायोंके आठ भंग जानना चाहिए । साता असातादिक सम्पूर्ण परिवर्तमान प्रकृतियों के अलग-अलग और सम्मिलित रूपमें आठ भंग होते हैं। विशेष यह है कि वेदनीययुगलके सामान्यसे स्यात् एक बन्धक है । स्यात् अनेक बन्धक हैं । अबन्धक नहीं हैं।
१. "णाणाजीवेहि भंगविचयाणुगमेण दुविहो णिद्देसो ओघेण, आदेसेण य । तत्थ ओघेण पेजं दोसो च णियमा अस्थि । सुगममेदं । एवं जाव अणाहारए त्ति वत्तव्वं । णवरि मणुसअपज्जत्तएसु णाणेगजीवं पेज्जदोसे अस्सिऊण अभंगा । तं जहा-सिया पेज्ज। सिया णोपेज्जं । सिया पेज्जाणि । सिया णोपेज्जाणि । सिया पेज्जं च णोपेज्जं च । सिया पेज्जं च णोपेउजाणि च । सिया पेज्जाणि च णोपेज्जं च । सिया पेज्जाणि च णोपेज्जाणि च ।"-जयध,पृ०३६०-३६१ ।
यहाँ आठ भंग इस प्रकार होंगे-१ एक बन्धक, २ एक अबन्धक, ३ अनेक बन्धक, ४ अनेक अबन्धक, ५ एक बन्धक एक अबन्धक, ६ अनेक बन्धक अनेक अबन्धक, ७ एक बन्धक अनेक अबन्धक, ८ अनेक बन्धक एक अबन्धक ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org