SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ महाबंधे सादावुजोव-तित्थयरं अस्थि बंधगा अबंधगा य । सादं अस्थि बंधगा य अबंधगा य । असादं अस्थि बंधगा य अबंधगा य । दोणं वेदणीयाणं सव्वे बंधगा । अबंधगा णत्थि । इत्थि० पुरिस० णपुंस० अस्थि बंधगा य अबंधगा य । तिण्णं वेदाणं सिया सव्वे बंधगा। सिया बंधगा य अबंधगो य । सिया बंधगा य अबंधगा य । एवं तिण्णं-वेदाणं भंगो णिरयगदि-तिरिक्खगदि-मणुसगदि-देवगदिपंचजादि-दोसरी०-छस्संठा० चदु-आणुपु० तस-थावरादि-णवयुगलं दोगोदाणं । सेसाणं अत्थि बंधगा य अबंधगा य । एवं आभिणि० सुद० ओधि० मणपज्जव० चक्खुदं० अचखुदं० ओधिदं० त्ति । १३६. ओरालियमिस्स-पंचणा० णवदंसणा० मिच्छत्त० सोलसक० भयदु. तिण्णिसरी०-वण्ण०४ अगु० उप० णिमि० पंचंत० सिया सव्वे बंधगा । मिया बंधगा य अबंधगो य । सिया बंधगा य अबंधगा य । सादं अस्थि बंधगा य अबंधगा य । असादं अत्थि बंधगा य अबंधगा य । दोण्णं वेदणीयाणं सव्वे बंधगा । अबंधगा णस्थि । इत्थि० पुरिस० णपुंस० अस्थि बंधगा य अबंधगा य । तिण्णि-वेदाणं सिया सव्वे बंधगा। सिया बंधगा य अबंधगो य । सिया बंधगा य अबंधगा य । एवं वेदाणं भंगो [हस्सादि] दोयुगल-तिण्णिगदि-पंचजादि छस्संठा० । दोआयु ओघं । देवगदि०४ गृद्भित्रिक, मिथ्यात्व, १२ कषाय, आहारकद्विक, परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत तथा तीर्थकर प्रकृति के अनेक बन्धक और अनेक अबन्धक हैं। साताके अनेक बन्धक, अनेक अबन्धक हैं। असाताके अनेक बन्धकं अनेक अबन्धक हैं। दोनों वेदनीयके सर्व बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं । स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेदके अनेक बन्धक, अनेक अबन्धक हैं। तीनों वेदोंके स्यात् सर्व बन्धक हैं । स्यात् अनेक बन्धक हैं और एक अबन्धक हैं । स्यात् अनेक बन्धक हैं और अनेक अबन्धक हैं । नरकगति, तियचगति, मनुष्यगति, देवगति, ५ जाति, २ शरीर, ६ संस्थान, ४ आनुपूर्वी, त्रस-स्थावरादि : युगल, २ गोत्रों के तीनों वेदोंके समान भंग हैं। शेष प्रकृतियोंके अनेक बन्धक, अनेक अबन्धक हैं। आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान, चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, और अवधिदर्शन, तथा संज्ञी मार्गणामें इसी प्रकार जानना चाहिए। १३६. औदारिक मिश्रकाययोगमें-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, ३ शरीर, ४ वर्ण, अगुरुलधु, उपघात, निर्माण और ५ अन्तरायके स्यात् सब बन्धक हैं । स्यात् अनेक बन्धक और एक अबन्धक हैं। स्यात् अनेक बन्धक और अनेक अबन्धक हैं। साताके अनेक बन्धक और अनेक अबन्धक हैं। असाताके अनेक बन्धक और अनेक अबन्धक हैं । दोनों वेदनीयके सब बन्धक हैं। अबन्धक नहीं है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेदके अनेक बन्धक और अनेक अबन्धक हैं। तीनों वेदोंके स्यात् सब बन्धक हैं । स्यात् अनेक बन्धक और एक अबन्धक है । स्यात् अनेक बन्धक हैं और अनेक अबन्धक हैं । हास्य-रति, अरति-शोक ये दो युगल, ३ गति, ५ जाति, ६ संस्थानमें वेदके समान भंग है। दो आयु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy