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पयडिबंधाहियारो
१५३ दुस्सर उच्चागोदाणि । असादभंगो णवंसकवे० अरदिसो० तिरिक्खगदि० एइंदिय० हुंडसंठाण-तिरिक्खाणुपु० थावरादि०४ अथिरादिपंच-णीचागोदाणं । तिण्णिवेद-हस्सादिदोयुग दोगदि० पंचजादि-छस्संठा० दोआणुपुग्वि-तसथावरादिणवयुगला. दोगोदाणं सिया बंधगो। सिया बंधगा। अबंधगा णस्थि । दोआयु-छस्संघ० दोविहा० दोसर० सादभंगो कादव्यो पत्तेगेण साधारणेण वि । एवं मणुस-अप्पज्जत्तभंगो वेउब्धियमिस्स० आहारकाय० आहारमिस्स० सासण० सम्मामिच्छ० । णवरि अप्पप्पणो धुविगाओ णादव्याओ भवंति। वेउब्धियमिस्स मिच्छत्त असादभंगो। तित्थयरं सादभंगो। आहार० आहारमिस्स तित्थयरं सादभंगो। सासणे तिरिक्खगदि-संयुता असादभंगो । सेसाणं सादभंगो । सम्मामि० मणुसगदि-संयुताओ असादभंगो। सेसाणं सादभंगो ।
१३८. देवेसु-भवणवासिय याव ईसाणत्ति णिरयभंगो । णवरि ओरालि० अंगो० आदावुजोवं अत्थि बंधगा य अबंधगा य । छरसंघड० दो विहाय दोसर० ओषभंगो । दोमण० दोवचि० पंचणा० छदंस० चदुसंज० भयदु० तेजाक० वण्ण०४ अगु० उप० णिमि० पंचंत० सिया सव्वे बंधगा। सिया बंधगा य अबंधगो य । सिया बंधगा य, अवंधगा य । थीणगिद्धितिय मिच्छत्त. बारसक० आहारदु० परघाउस्सा
प्रस
दुस्वर, उच्चगोत्रका साताके समान भंग जानना चाहिए । नपुंसकवेद अरति, शोक, तिर्यचगति, एकेन्द्रिय, हुंडक संस्थान, तिथंचानुपूर्वी, ४ स्थावरादि, अस्थिरादि पंचक, नीच गोत्रका असाता. के समान भंग है।३ वेद, हास्यादि दो यगल.२ गति.५ जाति.६ संस्थान.२ आनुप स्थावरादि नवयुगल और २ गोत्रके स्यात् एक बन्धक है । स्यात् अनेक बन्धक हैं; अबन्धक नहीं है । २ आयु, ६ संहनन, २ विहायोगति और २ स्वरके प्रत्येकसे और सामान्यसे साताके समान भंग करना चाहिए।
वैक्रियिकमिश्र, आहारककाययोग, आहारकमिश्रकाययोग, सासादनसम्यक्त्व, तथा सम्यक्त्वमिथ्यात्वगुणस्थानमें लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्यकी तरह भंग है। विशेष, यहाँ अपनी-अपनी मार्गणामें सम्भवनीय ध्रव प्रकृतियोंको जानना चाहिए। वैक्रियिक मिश्रमें -मिथ्यात्वका असाताके समान भंग होता है। तीर्थकरका साताके समान भंग होता है। आहारक, आहारकमिश्रमें-तीर्थकरका साताके समान भंग है। सासादनमें-तिर्यंचगति मिलाकर असाताके समान भंग है । शेषमें साताके समान भंग है। सम्यक्त्वमिथ्यात्वमें-मनुष्यगति मिलाकर असाताके समान भंग जानना चाहिए। शेषमें साताके समान भंग है।
१३८. देवों में-भवनवासियोंसे ईशान स्वर्ग पर्यन्त नरकगति के समान भंग है। विशेष यह है कि औदारिक अंगोपांग, आतप, उद्योतके अनेक बन्धक तथा अनेक अबन्धक हैं। छह संहनन, २ विहायोगति, २ स्वरके ओघके समान भंग हैं।
दो मन-दो वचनयोगमें-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, ४ संचलन, भय, जुगुप्सा, तैजस, कार्मण, ४ वर्ण, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और ५ अन्तरायके स्यात् सब बन्धक हैं । स्यात् अनेक बन्धक, एक अबन्धक है । स्यात् अनेक बन्धक हैं, अनेक अबन्धक हैं । स्त्यान२० For Private & Personal Use Only
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