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महाबंधे
१५२ तिण्णिमण तिण्णिवचि० संजद-सुक्कलेस्सियाणं । णवरि योगलेस्सासु दोणं वेदणीयाणं सव्वे बंधगा । अबंधगा णत्थि ।
१३७. मणुस-अपज्जत्ते-पंचणा० णवदंस० मिच्छ० सोलसक० भयदु० ओरालिय-तेजाक० वण्ण०४ अगु० उप० णिमि० पंचंत० सिया बंधगो य, सिया बंधगा य । अबंधगा णत्थि । सादं सिया अबंधगो। सिया बंधगो। सिया अबंधगा। सिया बंधगा। सिया अबंधगो य, बंधगो य । सिया अबंधगो य बंधगा य । सिया अबंधगा य, बंधगो य । सिया अबंधगा य बंधगा य । असादं सिया बंधगो । सिया अबंधगो। सिया बंधगा। सिया अबंधगा। सिया बंधगो य अबंधगो य । सिया बंधगो य अबंधगा य। सिया बंधगा य, अबंधगो य । सिया बंधगो (गा) य अबंधगा य । दोण्णं वेदणीयाणं सिया बंधगो। सिया बंधगा य। अबंधगा णत्थि। सादभंगो इत्थि० पुरिस० हस्सरदि-दोआयु० मणुसगदि-चदुजादि-पंचसंठा० ओरालियअंगो० छस्संघ० मणुसाणु० परघादुस्सा० आदावुज्जो० दोविहा० तस०४ थिरादिलक
~~~ विशेष'-शंका-भंगविचयमें नानाजीवोंकी प्रधानतासे कथन करनेपर एक जीवकी अपेक्षा भंग कैसे बन सकते हैं ?
समाधान-एक जीवके बिना नानाजीव नहीं बन सकते हैं । इससे भंगविचयमें नाना जीवोंकी प्रधानता रहनेपर भी एक जीवकी अपेक्षा भी भंग बन जाते हैं।
इसी तरह पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय-पर्याप्तक, त्रस, त्रस-पर्याप्तक, ३ मनोयोग, ३ वचनयोग, संयत और ३३ला लेश्यावालोंके भी जानना चाहिए। विशेषता यह है कि योग और लेश्यामेंदोनों वेदनीयके सर्व बन्धक है; अबन्धक नहीं है।
१३७. मनुष्यलब्ध्यपर्याप्तकोंमें-५ ज्ञानावरण, ९ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक, तैजस, कर्मण शरीर, ४ वर्ण, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, और ५ अन्तरायका स्यात एक बन्धक है स्यात् अनेक बन्धक हैं ; अबन्धक नहीं हैं। साताका स्यात् एक अबन्धक है , स्यात् एक जीव बन्धक है ; स्यात् अनेक अवन्धक हैं। स्यात् अनेक बन्धक हैं । स्यात् एक अबन्ध क, एक बन्धक है । स्यात् एक अबन्धक, अनेक बन्धक हैं । स्यात् अनेक अबन्धक, एक बन्धक है । स्यात् अनेक अबन्धक, अनेक बन्धक हैं। असाताके-स्यात् एक बन्धक है , स्यात् एक अबन्धक है। स्यात् अनेक बन्धक हैं, स्यात् अनेक अबन्धक हैं। स्यात् एक बन्धक तथा एक अबन्धक है । स्यात् एक वन्धक, अनेक अबन्धक है। स्यात् अनेक बन्धक, एक अवन्धक है : स्यात् अनेक बन्धक ,अनेक अबन्धक हैं। दोनों वेदनीयोंका स्यात् एक बन्धक है , स्यात् अनेक बन्धक हैं; अबन्धक नहीं हैं। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य, रति, दो आयु, मनुष्य गति, ४ जाति, ५ संस्थान, औदारिक अंगोपांग, ६ संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योत, २ विहायोगति, ४ त्रस, स्थिरादिषट्क,
१. “णाणा जीवप्पणाए कधमे कभंगुप्पत्ती ? " एग जीवेण विणा णाणाजीवाणुप्पत्तीदो।" -जयध०, पृ० ३२१ ।
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