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महाबंधे णवरि भवसिद्धिय-सादं अस्थि बंधगा य अबंधगा य । असादं अत्थि बंधगा य अबंधगा य । दोण्णं वेदणी० सिया सव्वे सिं० बंधगा य । सिया बंधगा य अबंधगा य । सिया बंधगा य अबंधगा य । सेसाणं सादं अत्थि बंधगा य अबंधगा य । असादं अस्थि बंधगा य अबंधगा य । दोण्णं वेदणीयाणं सव्वे बंधगा; अबंधगा णस्थि (?)
१३२. आदेसेण णेर० पंचणा० छदसणा० बारसक० भयदुगुं० पंचिदि० ओरालिय० तेजाकम्म० ओरालि. अंगो० वण्ण०४ अगु०४ तस०४ णिमि० पंचंत. सव्वे बंधगा। अबंधगा णत्थि । थीणगिद्धि०३ मिच्छ० अणंताणुबंधि०४ उज्जोवं तित्थय० अस्थि बंधगा य अबंधगा य । सादस्स अस्थि बंधगा य अबंधगा य । असादस्स अत्थि बंधगा य अबंधगा य । दोण्णं वेदणीयाणं सव्वे बंधगा अबंधगा णत्थि । एवं वेदणीयभंगो सत्तणोक० दोगदि-छस्संठा० छस्संघ० दोआणु० दोविहा० थिरादिछयुग० दोगोदाणं । दो-आयुगाणं सिया सव्वे अबंधगा। सिया अबंधगा य बंधगो य । सिया अबंधगा य बंधगो य । एवं सव्व-णिरयाणं सणक्कुमारादि उवरिमदेवाणं ।
ओघके समान भंग समझना चाहिए । विशेष, भव्य सिद्धिकमें-साताके अनेक बन्धक और अनेक अबन्धक हैं। असाताके अनेक बन्धक और अनेक अबन्धक हैं। दोनों वेदनीयोंके कदाचित् सर्व बन्धक हैं । कदाचित् अनेक बन्धक हैं । स्यात् अनेक अबन्धक हैं , स्यात् अनेक बन्धक और अनेक अबन्धक हैं। शेषमें साताके अनेक बन्धक और अनेक अबन्धक हैं। असाताके अनेक बन्धक और अनेक अबन्धक हैं । दोनों वेदनीयोंके सब बन्धक हैं । अबन्धक नहीं हैं । (?)
विशेषार्थ-अयोगी जिनके बन्धके कारण योगका अभाव हो जानेसे बन्धका अभाव है । अतः यहाँ साता असाटाके अबन्धक नहीं है यह कथन विचारणीय है ।
१३२. आदेशकी अपेक्षा-नारकियोंमें-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, १२ कषाय, भय, जुगुप्सा, पंचेन्द्रिय जाति, औदारिक-तैजस-कार्मण शरीर, औदारिक अंगोपांग, वणे ४, अगुरुलघु ४, त्रस ४, निर्माण और ५ अन्तरायके सब बन्धक हैं; अबन्धक नहीं हैं। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, ४ अनन्तानुबन्धी, उद्योत और तीर्थकरके अनेक बन्धक और अनेक अबन्धक हैं। साताके अनेक बन्धक और अनेक अबन्धक हैं। असाताके अनेक बन्धक और अनेक अबन्धक हैं । दोनों वेदनीयोंके सब बन्धक हैं ; अबन्धक नहीं हैं।
विशेष-नरकगतिमें आदिके ४ गुणस्थान होनेसे दोनों वेदनीयके अबन्धक नहीं पाये जाते हैं।
७ नोकषाय, २ गति, ६ संस्थान, ६ संहनन २ आनुपू:, २ विहायोगति, स्थिरादि ६ युगल तथा २ गोत्रोंमें वेदनीयका भंग जानना चाहिए। २ आयु ( मनुष्य तिर्यंचायु) के स्यात् (कदाचित् ) सब अबन्धक हैं। कदाचित् अनेक अबन्धक और एक जीव बन्धक है। स्यात् अनेक अबन्धक और अनेक बन्धक हैं। इसी तरह सम्पूर्ण नरकोंमें जानना चाहिए। सनत्कुमारादि ऊपरके देवोंमें भी इसी प्रकार समझना चाहिए ।
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