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महाबंधे णामं ( णामाणं ) सत्थाणभंगो । एवं वेगुब्धिय० अंगो० ।
१२४. आहारसरीरं बंधंतो पंचणा० छदंस० सादावे० चदुसंज. पुरिसवे. हस्सरदिअरदि (१) भयदु० उच्चा० पंचंत० णियमा बं० । देवायु० सिया बं० । णामाणं सत्थाणभंगो। एवं आहारस० अंगो० । पंचिंदिय. जादिभंगो तेजाक. समचदु० वण्ण०४ अगु०४ तस०४ थिगदि पंचण्णं गदीणं । हेट्ठा उवरि० । णामाणं अप्पप्पणो सत्थाणभंगो । णवरि समचदु० पसत्थवि० थिरादिपंचण्णं पगदीणं णिरयायुगं णस्थि ।
१२५. णग्गोदं बंधतो पंचणा० णवदंस. सोलसक० भयदु० पंचंतरा० णियमा बं० । दोवेदणीय० सत्तणोक० दोगोदं सिया पं० । एदेसिं एकदरं बं०, ण चेव अबं० । मिच्छत्त-तिरिक्खमणुसायुगं सिया बं० । णामं ( णामाणं) सत्थाणभंगो। एसभंगो सादियसंठा० कुज्जसं० वामणसं० चदुसंघडणाणं ।
नरकायु-देवायुका स्यात् बन्धक है। नामकर्मकी प्रकृतियोंका स्वस्थानसन्निकर्षवत् भंग है।
वैक्रियिक अंगोपांगमें वैक्रियिक शरीरवत् भंग जानना चाहिए।
१२४. आहार कशरीरका बन्ध करनेवाला-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, साता वेदनीय, ४ संज्वलन, पुरुषवेद, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, उच्चगोत्र, ५ अन्तरायका नियमसे वन्धक है। देवायुका स्यात् बन्धक है । नामकर्मकी प्रकृतियों के विषय में स्वस्थान सन्निकर्षमें वर्णित भंग है।
विशेष-आहारकशरीरका बन्ध अप्रमत्त दशामें होता है। अरति प्रकृतिकी बन्धव्यच्छित्ति प्रमत्तसंयत गुणस्थानमें होती है, अत: आहारक शरीरके बन्धके साथ अरतिका सन्निकर्ष नहीं होगा। इस कारण मूल पाठमें 'अरदि' अयुक्त प्रतीत होती है।
आहारकशरीर-अंगोपांगके बन्ध करनेवालेके आहारक शरीरवत् भंग है।
तैजस-कार्मण शरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वर्ण ४, अगुरुलघु ४, त्रस ४, स्थिरादि ५ प्रकृतियों के बन्धकोंका उपरितन अधस्तन प्रकृतियों के विषयमें पंचेन्द्रिय जाति के समान भंग है । नामकर्मको प्रकृतियोंका स्वस्थान सन्निकर्षवत् भंग जानना चाहिए। विशेष, समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, स्थिरादि ५ प्रकृतियोंके बन्धकोंके नरकायुका बन्ध नहीं है ।
१२५. न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थानका बन्ध करनेवाला-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, ५ अन्तरायोंका नियमसे बन्धक है। २ वेदनीय, ७ नोकषाय, दो गोत्रका स्यात् बन्धक है। इनमें-से अन्यतरका बन्धक है। अबन्धक नहीं है। मिथ्यात्व, तिर्यंचायु, मनुष्यायुका स्यात् बन्धक है। नामकर्मकी प्रकृतियोंका स्वस्थान सन्निकर्षवत् भंग है।
स्वातिसंस्थान, कुजक संस्थान, वामनसंस्थान, वज्रवृषभनाराच तथा असम्प्राप्तासृपाटिका संहननको छोड़कर शेष ४ संहननके बन्धकके इसी प्रकार भंग जानना चाहिए।
विशेष-संस्थान ४ और संहनन ४ सासादन गुणस्थान पर्यन्त बँधते हैं। अतः इनका समान रूपसे वर्णन किया है।
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