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पय डिबंधाहियारो पंचिंदि० तिष्णिसरी० ओरालि. अंगो० वण्ण०४ मणुसाणु० अगु० उपघा० तसबादर-पत्तेय-णिमिण-पंचंत० णियमा बंध० । थोणगिद्धितिग-मिच्छत्तं अणंताणुबंधि०४ परघाउस्सा० तित्थय० सिया बंध०, सिया अबं० । सादं सिया० । असादं सिया० । दोण्णं एकद० बं० । ण चेव अवं० । एवं तिणिवे. हस्सादि-दो युग० छस्संठा० छस्संघ० पजत्तापज. थिरादि-पंचयुग दोगोदाणं० । दोविहाय दोसरं सिया० । दोण्णं दोण्णं एकदरं बंध० । अथवा दोण्णं दोण्णंपि अबं० ।
११६. देवायुगं बंधंतो० पंचणा० छदंसणा० सादावे० चदुसंज. हस्सरदिभयदुगु० देवगदि० पंचिंदि० तिण्णिसरीर०-समचदु० वेउन्वि० अंगो० वण्ण०४ देवाणु० अगु०४ पसत्थवि० तस०४ थिरादिछक्कं णिमि० उच्चागो० पंचंत० णियमा बं० । थीणगिद्धि०३ मिच्छत्त-बारसक० आहारदु० तित्थय० सिया० । इत्थि० सिया० । पुरिस• सिया० । दोण्णं वेदाणं एक्कदरं० । ण चेव अबं० ।
१२०. गिरयगदिं बंधतो णिरयायभंगो। णवरि णिरयायुं सिया बंधदि । एवं
जुगुप्सा, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, औदारिक-तैजस-कार्मण शरीर, औदारिक अंगोपांग, वर्ण ४, मनुष्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, त्रस, बादर, प्रत्येक, निर्माण तथा ५ अन्तरायका नियमसे बन्धक है। स्त्यानगृद्धि त्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी , परघात, उच्छ्वास, तीथकरका स्यात बन्धक है. स्यात अबन्धक है। सातावेदनीयका स्यात् बन्धक है, असाताका स्यात् बन्धक है । दोनोंमें-से अन्यतरका बन्धक है ; अबन्धक नहीं है । ३ वेद, हास्यादि दा युगल, ६ संस्थान, ६ संहनन, पर्याप्तक, अपर्याप्तक, स्थिरादि पाँच युगल तथा २ गोत्रांका इसी प्रकार वर्णन है । अर्थात् एकतर के बन्धक हैं ; अबन्धक नहीं है। दो विहायोगति, दो स्वरका स्यात् बन्धक है। दोनोंमें से अन्यतरका बन्धक है अथवा २, २ का भी अबन्धक है।
११९. देवायुका बन्ध करनेवाला-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, साता, ४ संज्वलन, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा, देवगति, पंचेन्द्रिय जाति, ३ शरीर (वैक्रियिक-तैजस-कार्मण ), समचतुरस्र-संस्थान, वैक्रियिक अंगोपांग, वर्ण ४, देवानुपूर्वी, अगुरुलघु ४, प्रशस्तविहायोगति, त्रस ४, स्थिरादिषटक, निर्माण, उच्चगोत्र तथा ५ अन्तरायका नियमसे बन्धक है । स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, बारह कपाय, आहारकद्विक, तीर्थकरका स्यात् बन्धक है। स्त्रीवेदका स्यात् बन्धक है, पुरुषवेदका स्यात् बन्धक है। दो वेदों में-से अन्यतरका बन्धक है; अबन्धक नहीं है।
१२०. नरकगतिका बन्ध करनेवालेके नरकायुके समान भंग जानना चाहिए। विशेष, नरकायुका स्यात् वन्ध करता है।
विशेष-नरकायुके बन्धकके नियमसे नरकगतिका बन्ध होता है, किन्तु नरकगति के बन्धकके नरकायुके बन्धका ऐसा कोई नियम नहीं है । नरकायुका बन्ध हो अथवा बन्ध न भी हो। गति बन्ध तो सदा होता रहता है, किन्तु आयुका बन्ध तो सदा नहीं होता है।
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