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________________ पय डिबंधाहियारो १३६ ११४. हस्सं बंधं० पंचणा० चदुदंस० चदुसंज० रदिभयदु० पंचंत० णियमा [बंधगो] । पंचदंस० मिच्छत्त-बारसक० तिण्णिआयु. आहारदु० तेजाक० वण्ण०४ अगु० ४ आदावुज्जो० [णिमि० ] तित्थय० सिया बं०, सिया अबंधगो। सादं सिया बं०, असादं सिया बं० । दोण्णं एकदरं० । ण चेव अबं० । एवं तिण्णि वेद० जस० अजस० दोगोदाणं । तिण्णिगदि सिया०, सिया अबं० । तिण्णं एक्कदरं बं० अथवा अबं० । एवं गदिभंगो पंचजादि-दोसरी०-छस्संठा० दोअंगो० छस्संघ० तिण्णि आणु० दो विहा० तसादिणवयुग० । एवं रदीए०।। ११५. भयं बंधंतो पंचणा० चदुदंस० चदुसंज० दुगुं० पंचंत० णियमा बं० । पंचदं० मिच्छत्त-बारसक० चदुआयु. आहारदुगं तेजाकम्म० वण्ण०४ अगु०४ आदावजो०. णिमि० तित्थय० सिया बं० सिया अबं० । सादं सिया० । असाद सिया० । दोणं एकदरं बंधगो, ण चेव अबं० । एवं तिण्णिवे०-जस-अज०-दोगोदं० । चदुगदि सिया बं० । चदुण्णं गदीणं एक० । अथवा चदुण्णपि अबंध० । एवं गदिभंगो ११४. हास्यका बन्ध करनेवाला-५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, रति, भय, जुगुप्सा, ५ अन्तरायका नियमसे बन्धक है । ५ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १२ कषाय, नरकायुको छोड़कर तीन आयु, आहारकद्विक, तैजस कार्मण, वर्ण ४, आताप, उद्योत [ निर्माण ] तथा तीर्थकरका स्यात बन्धक है, स्यात अबन्धक है। साता वेदनीयका स्यात बन्धक है, असाता वेदनीयका स्यात् बन्धक है, दो में-से अन्यतरका बन्धक है; अबन्धक नहीं है। ३ वेद, यशःकीर्ति, अयशःकीर्ति और दो गोत्रोंमें वेदनीयके समान भंग है । ३ गति (नरक बिना) का स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है। तीनमें-से अन्यतमका बन्धक है अथवा तीनोंका भी अबन्धक है। विशेष-अपूर्वकरणके अन्तिम भाग तक हास्यका बन्ध होता है, किन्तु गतिका बन्ध अपूर्वकरणके छठवें भाग पर्यन्त होता है । इस कारण हास्यके बन्धकको गतित्रयका अबन्धक भी कहा है। ५ जाति, २ शरीर, ६ संस्थान, २ अंगोपांग, ६ संहनन, ३ आनुपूर्वी, २ विहायोगति, त्रसादि ९ युगलका गति के समान भंग है अर्थात् एकतरके बन्धक हैं अथवा सबके भी अबन्धक है। रतिका बन्ध करनेवालेके हास्यके समान भंग है । ११५. भयका बन्ध करनेवालेके-५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, जुगुप्सा, ५ अन्तरायका नियमसे बन्धक है । ५ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १२ कपाय, ४ आयु, आहारकद्विक, तैजस-कार्मण, वर्ण ४, अगुरुलघु ४, आताप, उद्योत, निर्माण तथा तीर्थकरका स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है । साताका स्यात् बन्धक है, असाताका स्यात् बन्धक है । दोनों मेंसे अन्यतरका बन्धक है; अबन्धक नहीं है । ३ वेद, यशःकीर्ति, अयश-कीर्ति तथा दो गोत्रोंका वेदनीयके समान जानना चाहिए । चार गतिका स्यात् बन्धक है। चार में से एकतरका बन्धक है अथवा चारोंका भी अबन्धक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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