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महाघे
वण्ण०४ अगु०४ उज्जोव-तस०४ णिमि० तित्थय० सिया बं० । सिया अनं० । सादं सिया बं० । असादं सिया बंध० । दोष्णं वेदणी० एक्कदरं नं० । ण चैव अबं० । एवं जस० अज्जस दोगोदाणं । हस्सरदि सिया० । अरदिसो० सिया बं० दोणं युगलाणं एकद० । अथवा दोण्णं पि अवं० । एवं तिण्णिगदि- दोसरीर बस्संठाणं दोअंगो० छस्संघ० तिष्णि आणु० दोविहा० थिरादिपंचयु ० ।
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११३. पुंस० बंधतो पंचणाणा गवदंस० मिच्छत्त- सोलस० भयदुगु० तेजाक० वण्ण०४ अगु० उप० णिमि० पंचंत णियमा बं० । सादं सिया० ब । असादं सिया | दोणं एकदरं वं० । ण चेव० [ अबंधगो ] | एवं हस्सरदि० अरदिसोगाणं दोयु० तिष्णिगदि - पंचजादि- दोसरी० बसठाण० तिणि आणु० तसथावरोदिनवयुगलाणं दोगोदाणं । तिणिआणु० [ आयु० ] परघादुस्सा० आदावुज्जो० सिया बं० सिया अबं० । दोअंगो० छस्संघ० दोविहा० दोसर० सिया बं० सिया अबं० । दोणं छष्णं दोष्णं दोष्णं पि एकदरं बं० । अथवा एदेसिं अनं० ।
आहारकद्विक, तैजस· कार्मण, वर्ण ४, अगुरुलघु ४, उद्योत, त्रस ४, निर्माण तथा तीर्थंकर का स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है । साताका स्यात् बन्धक है । असाताका स्यात् बन्धक है । दोनोंमें-से अन्यतरका बन्धक है; अबन्धक नहीं है । यशःकीर्ति, अयशकीर्ति तथा दो गोत्रोंका वेदनीयके समान भंग है । हास्य, रतिका स्यात् बन्धक है। अरति शोकका स्यात् बन्धक है । दो युगलों में से अन्यतरका बन्धक है, अथवा दोनों युगलोंका भी अबन्धक है । नरकगतिको छोड़ शेष ३ गति, २ शरीर, ६ संस्थान, २ अंगोपांग, ६ संहनन, ३ आनुपूर्वी, २ विहायोगति, स्थिरादि पंच युगलका इसी प्रकार है अर्थात् इनमें से एकतरका बन्धक है अथवा सबका भी अबन्धक है ।
११३. नपुंसकवेदका बन्ध करनेवाला - ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, मिध्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजस-कार्मण शरीर, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और ५ अन्तरायोका नियमसे बन्धक है ।
विशेष—नपुंसकवेदका बन्ध मिथ्यात्व गुणस्थान में होता है, इस कारण यहाँ मिथ्याका भी नियम से बन्ध कहा है 1
साताका स्यात् वन्धक है; असाताका स्यात् बन्धक है। दोनोंमें से अन्यतरको बन्धक है, अवन्धक नहीं है । हास्यरति, अरतिशोक ये दो युगल, देवगतिको छोड़कर ३ गति, ५ जाति, २ शरीर, ६ संस्थान, ३ आनुपूर्वी, त्रस स्थावरादि ९ युगल, दो गोत्रोंका इसी प्रकार भंग है । देवायुको छोड़कर शेष ३ आयु, परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योतका स्यात् बन्धक है, स्यात् अबन्धक है । दो अंगोपांग, ६ संहनन, २ विहायोगति, २ स्वरका स्यात् बन्धक है, स्यात् अन्धक है । २, ६, २, २ में से अन्यतर बन्धक है अथवा २, ६, २, २ का अवन्धक है ।
विशेष—यहाँ तीन आनुपूर्वीका पहले कथन आ चुका है, अतः पुनः आगत 'तिणि आणु०' के स्थान में तीन आयुका द्योतक 'तिष्णि आयु' पाठ उपयुक्त जँचता है ।
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