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पयडिबंधाहियारो
१३७ पंचजादि-दो-सरी०-छस्संठा० दोअंगो० छस्संघ० चदुआणु० दो विहा० तसादिणवयुगलाणं । एवं माणसंज० । णवरि दोसंज० णियमा बं० । एवं चेव मायासंज० । णवरि लोभसंज० णियमा बंध० । लोभसंजलणं बंधंतो-पंचणा० चदुदंस० पंचंत० णियमा ६० । मिच्छत्तं पण्णारसकसा० सिया बं० । सेसं कोधसंजलण० भंगो ।
१११. इत्थिवेदं बंधतो पंचणा० णवदंसणा० सोलसक० भयदुगुं० पंचिं० तेजाक. वण्ण०४ अगुरु०४ तस०४ णिमि० पंचंत० णियमा बंध० । सादासादं सिया बं० । दोण्णं वेदणीयाणं एक्कदरं बं० । ण चेव अयं । एवं हस्सरदि-अरदिसोगाणं दोयुग. तिण्णि-गदि-दो-सरीर-छस्संठाणं दोअंगो० तिण्णिआणु० दोविहा० थिरादिछयुग० दोगोदाणं । मिच्छत्तं तिण्णि आयु० उज्जोव० सिया बं०, सिया अबं० । छस्संघ० सिया बं० । छण्णं एक्कदरं बं० । अथवा छण्णंपि अवं० ।
११२. पुरिसवेदं बंधंतो पंचणा० चदुदंस० चदुसंज० पंचंत० णियमा बं० । पंचदंस० मिच्छत्तं बारसक० भय दुगु० तिण्णि आयु. पंचिदि-आहारदु० तेजाक०
हास्य-रति, अरति-शोक इन युगलों, ४ गति, ५ जाति, २ शरीर, ६ संस्थान, २ अंगोपांग, ६ संहनन, ४ आनुपूर्वी, २ विहायोगति, सादि नवयुगलका इसी प्रकार है अर्थात् एकतरका बन्धक है तथा अबन्धक भी है।
संज्वलन मानका बन्ध करनेवालेके संज्वलन क्रोधके समान भंग है। विशेष, संज्वलन माया तथा लोभका नियमसे बन्धक है । संज्वलन मायाका बन्ध करनेवालेके इसी प्रकार भंग है । विशेष, संज्वलन लोभका नियमसे बन्धक है। संज्वलन लोभका बन्ध करनेवाला-५ ज्ञानाव 1.४ दर्शनावरण.५ अन्तरायका नियमसे बन्धक है। मिथ्यात्व. १५ कषायोंका स्यात् बन्धक है । शेष प्रकृतियोंका संज्वलन क्रोधके समान भंग है।
१११. स्त्रीवेदका बन्ध करनेवाला-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, पंचेन्द्रिय, तैजस, कार्मणशरीर, वर्ण ४, अगुरुलघु ४, त्रस ४, निर्माण तथा ५ अन्तरायोंका नियमसे बन्धक है। साता. असाताका स्यात बन्धक है। दोमें-से अन्यतरका बन्धक है; अबन्धक नहीं है। हास्य, रति, अरति, शोक, नरकगतिको छोड़कर शेष ३ गति, २ शरीर, ६ संस्थान, २ अंगोपांग, ३ आनुपूर्वी, २ विहायोगति, स्थिरादि ६ युगल, २ गोत्रोंमें एकतरका बन्धक है; अबन्धक नहीं है । मिथ्यात्व, मनुष्य-तिर्यंच-देवायु, उद्योतका स्यात् बन्धक है,स्यात् अबन्धक है । ६ संहननका स्यात् बन्धक है। इनमें से अन्यतमका बन्धक है अथवा ६ का भी अबन्धक है।
११२. पुरुषवेदका बन्ध करनेवाला-५ ज्ञानावरण, 2 दर्शनावरण, ४ संज्वलन तथा ५ अन्तरायोंका नियमसे बन्धक है।
विशेष-पुरुषवेदका बन्ध नवमे गुणस्थानके प्रथम भाग पर्यन्त होता है और ज्ञानावरणादिका इसके आगे तक बन्ध होता है,अतः पुरुषवेदके बन्धकको ज्ञानावरणादिका नियमसे बन्धक कहा है।
५ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १२ कषाय, भय, जुगुप्सा, नरकायु बिना ३ आयु, पंचेन्द्रिय,
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